________________ अध्यायों में ऋग्वेद के आठ-दश मन्त्र उद्धृत किये गए हैं। ऋग्वेद के एक मन्त्र के दृष्टा दीर्घतमा ऋषि कहते हैं कि उन्होंने प्राण को देखा है। वह सभी इन्द्रियों का रक्षक है और कभी नष्ट नहीं होता। इसी प्रकार, एक दूसरे मन्त्र में प्राण को अमृत रूप बताया गया है। जब तक उसका इस शरीर में निवास रहता है, तब तक मृत्यु नहीं होती। उपनिषद और योग -- उपनिषद् के काल में ध्यान की साधना वेदों से बीज रूप में अंकुरित होकर विकसित अवस्था को प्राप्त हो गई थी। श्वेताश्वरोपनिषद में ध्यान का प्रचुर मात्रा में स्पष्ट वर्णन किया गया है। इसमें साधना करने के बाद ही ध्यान रूप मन्थन से अग्नि की भांति अपने हृदय में छिपे हुए परम देव परमेश्वर के दर्शन का उपदेश दिया गया है। वहाँ कहा गया है कि जिस प्रकार से तिलों में तेल, दही में घी और अरणियों में अग्नि छिपी रहती है, उसी प्रकार से परमात्मा हमारे हृदय में छिपे रहते हैं। वे परमात्मा तब ही प्राप्त होते हैं जब साधक विषयों से विरक्त होकर सदाचारी बनकर संयमरूपी तपस्या के द्वारा उनका निरन्तर ध्यान करता है। यहाँ पाँच मन्त्रों में ध्यान की सिद्धि के लिए परमेश्वर से प्रार्थना की गई है कि हमारे मन, बुद्धि और इन्द्रियों में प्रकाश फैला रहे / निद्रा, आलस्य और अकर्मण्यता आदि दोष हमारे ध्यान में विघ्न न कर सकें। वरुण और अपने पुत्र भृगु को तप का महत्त्व समझाते हुए कहा है कि - तू तप के ब्दारा ब्रह्म के तत्त्व को समझाने की कोशिश कर / यह तप ब्रह्म का ही स्वरूप है। उपनिषदों में ध्यान, योग एवं तप आदि शब्द समाधि के अर्थ में ही प्रयुक्त हुए हैं। उपनिषदों में ध्यान करने की विधि बतलाते हुए कहा गया है कि ध्यान योग का साधक सिर, गले एवं छाती को ऊँचा उठाये रखे एवं समस्त इन्द्रियों को बाह्य विषयों से हटाकर उनका मन के व्दारा हृदय में निरोध कर लेना चाहिए और फिर ॐकार रूपी नौका का सहारा लेकर परमात्मा का ध्यान करके समस्त भयानक प्रवाहों को पार कर लेना चाहिए। वहाँ ध्यान करने के लिए स्वच्छ एवं समतल भूमि पर आसन लगाने के लिए कहा गया है। ध्यान को आध्यात्मिक अर्थ में प्रयुक्त किया गया है। इसी कारण ध्यान को मोक्ष प्राप्ति का कारण माना गया है। मनुष्य ध्यान 1. ऋग्वेद, 1/164/31, 10/177/3. 2. ऐतरेय ब्राह्मण, 2/2/10. 3. श्वेताश्वरतरोपनिषद्, 1/14. 4. श्वेताश्वतरोपनिषद, 2/3. 5. तैत्तिरीयोपनिषद्, 3/2. 6.छान्दोग्योपनिषद, 7/6/1. तैत्तिरीयोपनिषद, 2/4.. 7. श्वेताश्वतरोपनिषद, 2/8/9. 8. वही, 2/10. 9. कठोपनिषद्, 1/2/12. 7 .