________________ भारतीय योग परम्परा में वैदिक, जैन और बौद्ध ये प्रमुख तीन परम्पराएँ मानी जाती हैं। इन तीनों परम्पराओं में ध्यान-योग एवं आचार विषयक विपुल साहित्य उपलब्ध है। ध्यान योग विषय पर कई मौलिक शोध प्रबन्ध भी प्रकाशित हुए किन्तु जैन योग परम्परा में आचार्य शुभचन्द्र द्वारा प्रणीत ज्ञानार्णव जैन योग का प्रतिनिधि ग्रन्थ माना जाता है। उसका भारतीय योग परम्परा में क्या महत्त्व है एवं आचार्य शुभचन्द्र का ऐतिह्य वृत्त क्या था ? भारतीय योग परम्परा में उनका क्या अवदान रहा है इत्यादि विषयों की जानकारी ज्ञानार्णव में प्रतिपादित ध्यान योग की पद्धति प्रायोगिक रूप से अपनाकर योग में रुचि रखने वाले लोग इसका लाभ अर्जित करें, इसी उद्देश्य को लक्ष्य बनाकर प्रस्तुत शोध प्रबन्ध को लिखने का प्रयास किया गया है। ज्ञानार्णव में विवेचित ध्यान योग के स्वरूप को सम्यक रीत्या अवगम के लिए ज्ञानार्णव से पूर्ववर्ती जैनाचार्यों के ध्यान योग विषयक ग्रन्थों का गम्भीरता के साथ अध्ययन करना अत्यन्त आवश्यक है। अत: शुभचन्द्र से पूर्ववर्ती जैनाचार्यों कुन्दकुन्द, समन्तभद्र, पूज्यपाद, अकलंक, जिनसेन आदि की रचनाओं को तुलनात्मक विवेचन का आधार बनाया है। कहीं-कहीं पर पातञ्जलयोगसूत्र, गीता आदि को तुलना के रूप में प्रस्तुत किया गया है। . . प्रस्तुत शोधप्रबन्ध का शीर्षक भारतीय योग परम्परा और ज्ञानार्णव है। सम्पूर्ण शोध प्रबन्ध उपसंहार सहित आठ अध्यायों में विभक्त है। भारतीय योग परम्परा नामक पहले अध्याय में सर्वप्रथम योग परम्परा की पृष्ठभूमि योग शब्द एवं उसका अर्थ इतिहास के परिप्रेक्ष्य में योग के आद्यकर्ता भगवान् ऋषभदेव अथवा प्रत्येक सम्प्रदाय वालों ने अपने कुल देव को योगमार्ग का आदि कर्ता माना है। योग का स्रोत एवं उसके क्रमिक विकास पर प्रकाश डालने का प्रयास है इसमें वेद, उपनिषद, महाभारत, गीता, योगवाशिष्ट, स्मृति, पुराण, भागवत् आदि वैदिक ग्रन्थों में प्रतिपादित योग विषय की चर्चा की गई है। साथ ही हठयोग, नाथयोग, शैवयोग, शाक्तयोग, पातंजलयोगदर्शन, अद्वैतवेदान्तदर्शन आदि के अनुसार योग के विभिन्न अंगों का विवेचन विश्लेषण हुआ है। इसके बाद बौद्ध परम्परा में ध्यानयोग सम्बन्धी विवेचन किया गया है। अध्याय के अन्त में जैन योग परम्परा और उसमें उपलब्ध योगविषयक साहित्य का उल्लेख कर योग की अवधारणा सम्बन्धी विचार प्रस्तुत किये हैं। द्वितीय अध्याय में ज्ञानार्णव ग्रन्थ और आचार्य शुभचन्द्र का परिचय प्रस्तुत किया गया है। ज्ञानार्णव वास्तव में ज्ञान का समुद्र है। क्योंकि इसमें प्रतिपादित ध्यान योग सम्बन्धी विषय समुद्र के समान अगाध और गम्भीर है ग्रन्थ के ध्यान शास्त्र, ध्यानतन्त्र, योगप्रदीप प्रभृति अन्य नाम भी ग्रन्थकार के द्वारा दिये गये हैं। आगे ग्रन्थ के प्रतिपाद्य विषय का विवेचन किया गया है। आद्योपान्त सम्पूर्ण ग्रन्थ में ध्यान से ही सम्बन्धित विषयों की ही विवेचना हुई है। सम्पूर्ण ग्रन्थ काव्यात्मक शैली में 42 सर्गों से विभक्त है। आचार्य शुभचन्द्र की दृष्टि में एक ऐसे साधक का जीवन उद्दिष्ट था जो लौकिक (xix)