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________________ वैदिक योग में लब्धियाँ - उपनिषद में स्पष्ट उल्लेख है कि लब्धियों से निरोगता, जरा-मरण का न होना, शरीर का हल्कापन, आरोग्य, विषयनिवृत्ति, शरीरकान्ति, स्वर-माधुर्य, मलमूत्र की अल्पता आदि प्राप्त होती हैं। इसी प्रकार विभिन्न प्रकार की लब्धियों का वर्णन उपनिषदों, गीता, पुराण एवं हठयोगादि ग्रन्थों में है, जिनका विवेचन-विश्लेषण करना यहाँ अभीष्ट नहीं है। यहाँ केवल योगदर्शन में वर्णित लब्धियों का परिचय ही अभिप्रेत है। योग दर्शन में यम, नियम आदि जो योग के आठ अंग कहे गये हैं, उनमें से प्रत्येक अंग की साधना से आभ्यन्तर एवं बाह्य दोनों प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। यम से प्राप्त लब्धियों अर्थात् विभूतियों के विषय में बताया गया है कि अहिंसाव्रत को पालन करने वाले साधक के सान्निध्य में हिंस्र पशु भी अपना क्रूर स्वभाव छोड़ देते हैं, सत्यव्रती का वचन कभी मिथ्या नहीं होता, अस्तेयव्रत से रत्नसमृद्धि प्राप्त होती है। ब्रह्मचर्य से वीर्यसंग्रह का लाभ होता है तथा अपरिग्रह से जन्म के स्वरूप का बोध हो जाता है। __नियम से प्राप्त लब्धियों के विषय में कहा है कि अन्तर्बाह्य शौच के पालन से अपने शरीर के प्रति जुगुप्सा तथा अलिप्तता का भाव उदित होता है और चित्त की शुद्धि, आनन्द, एकाग्रता एवं इन्द्रियजय तथा आत्मदर्शन की योग्यता प्राप्त होती है। सन्तोष से उत्कृष्ट सुख, तप से शरीर एवं इन्द्रियों की शुद्धि, स्वाध्याय से अपने इष्ट देवता का साक्षात्कार और ईश्वर प्रणिधान से समाधि की सिद्धि होती है। आसन द्वारा सर्दी एवं गर्मी की बाधा उत्पन्न नहीं होती। प्राणायाम से विवेक ज्ञानावरण का क्षय एवं विविध प्रकार की धारणा के लिए मन की तैयारी होती है। प्रत्याहार से समस्त इन्द्रियों पर विजय प्राप्त होती है। इसी प्रकार अतीत-अनागत का ज्ञान, विभिन्न प्राणियों की बोलियों की पहचान दूसारों की चित्तवृत्ति का ज्ञान, शरीर की दीप्ति एवं हलकापन, आकाशगमन आदि की प्राप्ति के साथ-साथ सर्वज्ञता भी प्राप्त होती है। ____ इस प्रकार योगदर्शन में अनेक विभूतियों या लब्धियों का विस्तृत वर्णन मिलता है, जिनकी सिद्धियाँ जन्म, औषध, मन्त्र, तप, समाधि आदि से प्राप्त होती हैं। बौद्धयोग में लब्धियाँ - बौद्ध परम्परा में लब्धियों का वर्णन अभिज्ञा नाम से मिलता है / बौद्धयोग के 1.श्वेताश्वतरोपनिषद, 2/12-13. 2. योगदर्शन, 2/35-9. 3. वही, 2/40-6. 4. वही, 2/49-54. 5. योगदर्शन, 3/5, 16-8, 26, 40-2 आदि. 6. वही, 4/1. 207
SR No.004283
Book TitleBhartiya Yog Parampara aur Gnanarnav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendra Jain
PublisherDigambar Jain Trishala Mahila Mandal
Publication Year2004
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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