________________ एवं परकीयों का धन किस उपाय से ग्रहण किया जा सकता है, ऐसे क्रूर चिन्तन में सतत् तन्मय होना स्तेयानुबन्धी रौद्रध्यान है। उसके उपायों का विचार, दाँवपेंच लगाने का विचार, सामने वाले की नजर बचाने, आँखों में धूल डालने आदि की तन्मय विचारधारा में चढ़ना एवं चोरी के कार्यों के उपदेश की अधिकता तथा चौर्य कर्म में चतुरता, चोरी के प्रत्येक कार्यों में तत्परता होना, जीवों के चौर्यकर्म के लिए निरन्तर चिन्ता उत्पन्न होना तथा चोरी करके भी निरन्तर आनन्दित एवं हर्षित होना, दूसरा कोई चोरी का कार्य करता हो तो हर्ष मानना, स्वयं एवं दूसरे के चौर्य कला, कौशलता की प्रशंसा करना, दूसरों की बहुमूल्य वस्तुओं को ठगाई (छल) से प्राप्त करना, सारभूत दिपद, चतुष्पद जीवों को सामर्थ्य बल से अपना बताकर भोगना एवं सतत् चौर्य कृत्य का चिन्तन, परधन हरण की चिन्ता मन, वचन, काय से स्वयं करना, कराना, अनुमोदना देना इन सबको करते हुए आनन्दित होना ही स्तेयानुबन्धी अथवा चौर्यानन्दी या तस्करानुबन्धी रौद्रध्यान है।' 4. विषयसंरक्षणानन्द रौद्रध्यान - चौथा विषय संरक्षणानन्द नामक रौद्रध्यान है, जो सांसारिक सुखोपभोगमूलक विषयों की सुरक्षा में अत्यन्त विमूढ बना, उन्हीं के विषय में अपने चिन्तन को लगाए रहता है। ग्रन्थकार ने उसके कलुषित चिन्तन के सम्बन्ध में लिखा है - "जो व्यक्ति अनेक आरम्भ-परिग्रहमूलक पदार्थों के रक्षण हेतु अत्यन्त उद्यत रहता है, उन्हीं में अपने संकल्प को जोड़े रखता है, अपने धन-वैभव को महत्त्वपूर्ण मानता हुआ - 'मैं राजा हूँ' ऐसे अहंकार से उद्दीप्त रहता है। ऐसा चिन्तन इस ध्यान के अन्तर्गत आता है। इसमें धन संरक्षण में मशगूल होकर उसका उग्र चिन्तन होता है। जीव को अच्छेअच्छे शब्दादि (शब्द, रूप, गन्ध, रस, स्पर्श) विषयों को प्राप्ति तथा भोग बहुत पसंद हैं / इसमें उसके साधन रूप, धन, वैभव की प्राप्ति व रक्षा में वह तत्पर रहता है, आरम्भपरिग्रह की रक्षा हेतु एवं अपने कुटुम्ब परिवार की रक्षा हेतु, दास-दासी, धन-धान्य, मकान, वस्त्र-आभूषण, गाय, भैंसं, बैल आदि पशु, तोता, मैना आदि पक्षी तथा आधुनिक विभिन्न भोग सामग्री को पाकर उनकी रक्षा हेतु निरन्तर चिन्तित रहना विषयसंरक्षणानन्द रौद्रध्यान है। इसके अतिरिक्त क्रूर आशय से शत्रुओं का संहार करने की तीव्र भावना, ग्राम, नगर, पुर, पटन आदि को दग्ध करने की तीव्र इच्छा होना, निष्कंटक राज्य को प्राप्त करने की अभिलाषा होना, राजा बनने की भोगेच्छा होना, स्वयं को प्रबल प्रतापी घोषित करना, धनादि को तिजोरी आदि में रखू ताकि कोई न ले, अग्नि, चोरादि का उपद्रव न हो, मैला-कुचैला पागल-सा रहने से कोई मेरा पीछा न करे, किसी से भी मैत्री न रखू, ताकि उनकी बात न सुननी पड़े, मितव्ययता से जीवन चलाऊँ, कम मूल्य की वस्तु 1. ज्ञानार्णव, 24/23-26. ध्यानशतक, गाथा 21. सिद्धान्तसारसंग्रह, 11/44. ध्यानदीपिका, गाथा 89-91. श्रावकाचार संग्रह, भाग 5, पृ. 351. . 146