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________________ वांछित प्रयोजन हेतु मूढजनों को संकट में फँसाना, बूढ़े, रोगी, नपुंसक आदि का विवाह करवाना; दूसरों के साथ विश्वासघात करना, गाय, घोड़ा आदि पशुओं की, तोता-मैना आदि पक्षियों की एवं खेत, बाग, कुआँ आदि की झूठी प्रशंसा करके प्रपंच फैलाकर, बुरे को अच्छा बताकर, अच्छे को बुरा बताकर, इन सबका क्रय-विक्रय करना, करवाना, झूठी गवाही देना, झूठे लेख लिखाना, धन, मकान आदि का अपहरण करना, करवाना, व्यापार एवं अन्य कार्य में दगाबाजी से दूसरे को ठगने का प्रयत्न करना, उसमें प्रसन्न होना, अपना मनमाना मिथ्यापंथ चलाना, वीतराग प्ररूपित शास्त्रों के अतिरिक्त अन्य कल्पित ग्रन्थों की रचना करना, करवाना, इन ग्रन्थों ब्दारा भोली जनता को भ्रम में डालना, दया में पाप बताना, हिंसा मार्ग का समर्थन करना, दूसरे की चुगली खाने का सोचना, दूसरे की नापंसद बात को किसी के सामने नमक-मिर्च लगाकर कह देने की उग्र व क्रूर इच्छा करना, तिरस्कार वचन, गाली, अपशब्द या अधम असभ्य शब्द सुना देने का सोचना, दूसरों के पास से येन-केन-प्रकारेण स्वार्थ साधने के लिए संकल्प करना, असत्य को सत्य करके लोगों के गले बात उतारना, सतत् मायामृषावचन मन में गढना, बहिरे, अन्धे, लूले, अपंग, कोढी आदि लोगों की हंसी-मजाक करना, करवाना, निर्दोषियों में दोष समूह को सिद्ध करके अपने असत्य सामर्थ्य के प्रभाव से अपने दुश्मनों का राजा के दारा अथवा अन्य किसी के द्वारा घात कराने का संकल्प करना, मूर्ख प्राणी को चतुराई के वचनों दारा ठगने में मैं चतुर हूँ - ऐसा सोचना, विचार करना तथा ये प्राणी मेरी प्रवीणता से बड़े अकार्यों में प्रवर्तेगे ही, इसमें कोई संदेह नहीं, ऐसे विचार करना, यह दुष्टात्मा हमेशा असत्य बोलकर मेरा नाश करता है, इसलिए असत्य भाषण से यह दुष्टात्मा वधबंधादि को प्राप्त होगा, ऐसा सतत् चिन्तन करना, ज्ञानी, ध्यानी, शीलवान् व्यक्तियों से सतत् ईर्ष्या करना, पागल आदि को देखकर उन्हें सताना, चिढ़ाना, उन्हें चिढ़ते हुए देखकर अत्यधिक आनन्दित होना, जुआ, ताश, शतरंज आदि खेलों में स्वभावत: झूठ बोलना, व्यर्थ की बकवाद करना, हस्तकौशलादि कार्यों में मन्त्र-तन्त्र-यन्त्रादि के आडम्बर दारा अपनी प्रतिष्ठा सुनने में आनन्दित होना आदि इन सभी प्रवृत्तियों को करते हुए आनन्दित होना मृषानुबन्धी रौद्रध्यान अथवा मृषानन्द रौद्रध्यान है।' 3. चौर्यानन्द रौद्रध्यान - चोरी विषयक उपदेश का बाहुल्य, चौर्यकर्म में चतुराई तथा चोरी में जो असाधारण रुचि होती है उसे चौर्यानन्द रौद्रध्यान कहते हैं। रौद्रध्यान चोरी के क्रूर चिन्तन से उत्पन्न होता है। दूसरे के पैसे, माल, पत्नी-पुत्रादि, जायदाद, धन-धान्य, मकान, गाय, भैंस आदि पशुओं को कैसे हजम करूँ, प्राप्त करूँ 1. ध्यानशतक गाथा 20. ज्ञानार्णव, 26/16-23. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, गाथा 475. सिद्धान्तसारसंग्रह 11/43. 2. चौर्योपदेशबाहुल्यं, चातुर्य चौर्यकर्मणि। .. यच्चौर्यकरतं चेतस्तच्चौर्यानन्दमिष्यते।। - ज्ञानार्णव, 24/22. 145
SR No.004283
Book TitleBhartiya Yog Parampara aur Gnanarnav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendra Jain
PublisherDigambar Jain Trishala Mahila Mandal
Publication Year2004
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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