________________ मनोज्ञ अमनोज्ञ संयोग में, किसी को अनिष्ट से संयोग न हो जाए इसकी पीड़ा है तो कहीं रोग की चिन्ता और किन्हीं लोगों को काम-भोगों की तीव्र लालसा ने विकल कर रखा है। ये सभी प्रकार के आर्त्तध्यान संसार के कर्मबन्धन के कारण हैं। ये अशुभध्यान सदा अच्छे पुण्य आदि का नाश करके जीव को सांसारिक विषय भोगों की ओर उन्मुक्त करते हैं। जिससे उसका मोक्षमार्ग अवरुद्ध हो जाता है। इसलिए ये आर्तध्यान सर्वदा त्याज्य हैं। आर्तध्यान के अवान्तर भेद को निदर्शित करने वाली सारिणी चारित्रसार' के अनुसार निम्न है - आर्त्तध्यान मनोज्ञ अनुत्पत्ति संप्रयोगसंकल्प अनुत्पत्ति विप्रयोगसंकल्प बाह्य आध्यात्मिक बाह्य आध्यात्मिक चेतनकृत अचेतनकृत शारीरिक मानसिक शारीरिक मानसिक आर्तध्यान के लक्षण - चेतनकृत अचेतनकृत आर्त्तध्यान से आश्रित चित्त वाले जीवों के बाह्य चिह्नों के सम्बन्ध में शास्त्रज्ञ विद्वानों ने कहा है - "मनुष्य चाहे अपने को चालाक समझकर यह छिपाये कि उसे आर्त्तध्यान नहीं होता. किन्तु उसके दिल में स्थित आर्तध्यान से पीड़ित व्यक्ति सबसे पहले तो शङ्कालु होता है फिर उसको शोक व भय से प्रमाद तक होने लगता है। उसका चित्त एक जगह नहीं ठहरता। वह विषयी होकर हर वक्त सोने लगता है, उसका शरीर धीरेधीरे शिथिल पड़ने लगता है। वह जीव निरन्तर आक्रान्त, शोक, क्रोध आदि क्रियाएँ करता है। इष्टवियोग, अनिष्टसंयोग तथा वेदना के कारण होते हैं। जोर-जोर से चिल्लाकर छाती पीट-पीटकर रोता है, आँसू बहाता है, बाल नोचता है एवं वाणी से दिल का गुस्सा उतारता है।'' वह परिग्रह में अत्यन्त आसक्त होकर एवं लोभी होकर, शोक करता हुआ / अपनी जीविका चलाता है। उसका शरीर क्षीण पड़ जाता है अत: मूर्छा आती है, शरीर की कान्ति नष्ट हो 1. चारित्रसार 167/4. 2. ज्ञानार्णव, 25/43. 3. तस्सऽक्कंदण-सोयण-परिदेवेण-ताडणाइं लिंगाई। इहाऽणिठविओगाऽविओग-वियणानिमित्ताई।। - ध्यानशतक 15-17. * 140