SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञान का उपकरण शास्त्र, संयम का उपकरण पिच्छी, शौच का उपकरण कमंडलु अथवा अन्य भी उपकरणों को प्रयत्नपर्वक ग्रहण करना और रखना आढाननिक्षेपण समिति है। 5.उत्सर्गसमिति (प्रतिष्ठापनासमिति)- अहिसाव्रत के निरतिचारपालनार्थ शारीरिक मलों को विवेकपूर्वक, एकान्त, जीवजन्तु रहित, गूढ, दूरस्थित, मर्यादित, विस्तीर्ण और विरोधरहित स्थान में मल-मूत्रादि का त्याग प्रतिष्ठापना समिति है। तात्पर्य जहाँ पर असंयतजनों का गमनागमन नहीं हो, ऐसे विजन स्थान को एकान्त कहते हैं। हरितकाय और त्रसकाय आदि से रहित जले हुए अथवा जले के समान, ऐसे स्थण्डिल - खुले मैदान को जीवजन्तुरहित कहा है। संवृत्त-मर्यादा सहित स्थान अर्थात् जहाँ लोगों की दृष्टि नहीं पड़ सकती है ऐसे स्थान को गूढ़ कहते हैं। विशाल या विलादि से रहित स्थान विस्तीर्ण कहा जाता है और जहाँ पर लोगों का विरोध नहीं है वह विरोधरहित स्थान है। बौद्ध-परम्परा और पाँच समितियाँ - बौद्ध परम्परा में यद्यपि समिति शब्द का प्रयोग उस अर्थ में नहीं हुआ है जिस अर्थ में जैनपरम्परा में व्यवहृत है। फिर भी समिति का आशय बौद्ध परम्परा में भी स्वीकृत है। संयुत्तनिकाय में बुद्ध कहते हैं 'भिक्षुओ! भिक्षु आने-जाने में सचेत रहता है। समेटने-पसारने में सचेत रहता है, देखने-भालने में सचेत रहता है। जाते, खड़े होते, बैठते, सोते, जागते, कहते, चुप रहते में सचेत रहता है। भिक्षुओ, इस तरह भिक्षु सम्प्रज्ञ होता है।' इस प्रकार हम देखते हैं कि बुद्ध पाँचों समितियों का विवेचन कर देते हैं मुनि की आवागमन की क्रिया के विषय में विनयपिटक में उल्लेख है कि मुनि सावधानीपूर्वक मन्थर गति से गमन करे। गमन करते समय वरिष्ठ भिक्षुओं से आगे न चले, चलते समय . ' दृष्टि नीचे रखे तथा जोर-जोर से हँसता हुआ और बातचीत करता हुआ न चले। सूत्तनिपात में मुनि की भिक्षा वृत्ति के सम्बन्ध में बुद्ध के निर्देश उपलब्ध हैं, वे कहते हैं - रात्रि के बीतने पर मुनि गाँव में पैठे, वहाँ न तो किसी का निमन्त्रण स्वीकार करे न किसी के द्वारा गाँव से लाये गए भोजन को, न मुनि गाँव में आकर सहसा विचरण करे, चुपचाप भिक्षा करे और (भिक्षा के लिए) किसी भी प्रकार का संकेत करते हुए कोई बात न बोले। यदि कुछ मिले तो अच्छा है और न मिले तो भी ठीक, इस प्रकार दोनों अवस्थाओं में 1. ज्ञानार्णव, 18/10-11., मूलाचार गाथा 13. 2. वही, 9/5/7 पृ. 594. 3.1. उत्तराध्ययन, 24/14., ज्ञानार्णव, 18/12-13., मूलाचार गाथा 14. . मलाचार, गाथा 15. 4. संयुत्तनिकाय, 34/5/1/7. 5. विनयपिटक, 8/4/4. 113
SR No.004283
Book TitleBhartiya Yog Parampara aur Gnanarnav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendra Jain
PublisherDigambar Jain Trishala Mahila Mandal
Publication Year2004
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy