________________ मूलाचार में भी सत्यव्रत के विषय में इन्हीं से मिलते-जुलते भावों को व्यक्त किया गया है। सम्भाषण करने योग्य वचन का निर्देश करते हुए आचार्य शुभचन्द्र ने लिखा है - 'जो वचन सत्य और दया से व्याप्त है, विरोध से रहित, आकुलता को दूर करने वाला, ग्राम्य स्वरूप से रहित, सभ्य व शिष्ट, गौरव से सहित महानता का कारण हो उसकी शास्त्र में प्रशंसा की जाती है। नहीं बोलने योग्य वचनों का निर्देश करते हुए लिखा है - 'जो वचन शंका को उत्पन्न करने वाला, पाप स्वरूप, दोषों से परिपूर्ण और ईर्ष्या को उत्पन्न करने वाला हो ऐसे वचन पूछे जाने पर भी सत्पुरुषों को नहीं बोलना चाहिए और न वैसे वचनों को किसी प्रकार से सुनना चाहिए। जो वचन मर्म को विदीर्ण करने वाला, मन में काँटे के समान चुभने वाला, स्थिरता से भ्रष्ट करने वाला, विरोध को उत्पन्न करने वाला और दयारहित है उसे कण्ठगत प्राण होने पर भी नहीं बोलना चाहिए।' सत्यवादी पुरुषों की प्रशंसा करते हुए लिखा है - 'इस जगत् में वे पुरुष धन्य हैं,.. जिनके हृदय में करुणा रूप समुद्र उत्पन्न होकर वचन रूपी लहरों के समूह के उल्लासों से जीवों को शान्ति प्रदान करता है। जहाँ धर्म का नाश होता हो, क्रिया बिगड़ती हो तथा समीचीन सिद्धान्त का लोप होता हो तो वहाँ समीचीन धर्म, क्रिया और सिद्धान्त के प्रकाशनार्थ बिना पूछे भी विद्वानों को बोलना चाहिए। क्योंकि यह सत्पुरुषों का कार्य है।'' सत्य वाणी का माहात्म्य वर्णन करते हुए कहा है - 'जीवों को जिस प्रकार कर्णप्रिय वाणी सुखी करती है, उसी प्रकारचन्दन, चन्द्रमा, चन्द्रमणि, मोती तथा मालती के पुष्पों की माला आदि शीतल पदार्थ सुखी नहीं कर सकते। जिन पुरुषों ने अपना जन्म यम व व्रतादि गुणों से संयुक्त सत्य शास्त्रों के अध्ययन पूर्वक व्यतीत किया है वे ही धन्य हैं और वे विद्वानों के द्वारा भी पूजनीय हैं।'5 सत्य वचन का सुफल - जिन मनुष्यों की सेवा देवादिक करते हैं, ऐसे तीर्थकर चक्रवर्ती आदि होते हैं उनके अग्नि में प्रवेश करने पर या जल में गिरने पर भी देवादिक उनकी सहायता करते हैं, यह सत्य सुवचन का सुफल है। / संसार का अधिकांश व्यवहार वचनों के माध्यम से ही चलता है। यदि मानव जगत्से वचन की प्रवृत्ति नष्ट हो जाए तो मनुष्य और पशु व्यवहार में कुछ भी अन्तर न रहे / वचन में असीम शक्ति निहित है। एक वचन वह है जो दुःखी, अशान्त और व्याकुल मनुष्य के अन्त:करण में अमृत घोलकर मृत्यु के मुख से भी निकालकर जीवन प्रदान 1. मूलाचार, गाथा 6/290. 2. ज्ञानार्णव, 9/5. 3. वही, 9/12. 4. वही, 9/14-15. 5. ज्ञानार्णव, 9/20. 6. वही, 9/42. 102