________________ चतुर्थ अध्याय ध्यान की सिद्धि में सहायक सामग्री ध्यान की सहायक साधन सामग्री के रूप में सर्वप्रथम आचार्य श्री.शुभचन्द्र देव ने रत्नत्रय की शुद्धता का निर्देश किया है। उन्होंने लिखा है - "ज्ञानीजनों ने सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र की शुद्धिपूर्वक ही ध्यान कहा है उक्त रत्नत्रय की शुद्धि के बिना जीवों का ध्यान करना व्यर्थ है क्योंकि उस ध्यान से मोक्ष रूप प्रयोजन की सिद्धि नहीं होती।''1 "जो पुरुष साक्षात् रत्नत्रय को प्राप्त नहीं करके ध्यान करना चाहता है वह मूर्ख आकाश के फूलों से बन्ध्या के पुत्र के लिए सेहरा बनाना चाहता है।''2 इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि ध्यान के लिए ध्यान से पूर्व की भूमिका की तैयारी में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र की विवेचना अनिवार्य है - 1. सम्यग्दर्शन - सम्यग्दर्शन का शाब्दिक अर्थ - सम्यग्दर्शन सम्यक् और दर्शन इन दो शब्दों से मिलकर निष्पन्न होता है। 'सम्यक्' शब्द अव्युत्पन्न है अर्थात् रौढिक है अथवा व्युत्पन्न अर्थात् व्याकरणसिद्ध भी है। 'सम्' उपसर्ग पूर्वक 'अञ्च' धातु से क्विप् प्रत्यय करने पर 'सम्यक्' शब्द बनता है। संस्कृत में इसकी व्युत्पत्ति 'समञ्चति इति सम्यक्' इस प्रकार मानी जाती है। जिसका अर्थ है प्रशंसा। यह प्रशस्त रूप गति, जाति, आयु, विज्ञानादि अभ्युदय और नि:श्रेयस का प्रधान कारण होता है। 'सम्यगिष्टार्थतत्त्वयोः' इस प्रमाण के अनुसार सम्यक् शब्द का प्रयोग इष्टार्थ और तत्त्व अर्थ में होता है। अत: इसका प्रशंसार्थ उचित नहीं है, इस शंका का समाधान यह है कि निपात शब्दों के अनेक अर्थ होते हैं। अथवा 'सम्यक्' का अर्थ तत्त्व भी किया जा सकता है। अथवा यह क्विप् प्रत्ययान्त शब्द है। इसका अर्थ है जो पदार्थ जैसा है उसे वैसा ही जानने वाला। दर्शन शब्द का अर्थ - दर्शन शब्द दृशि धातु से ल्युट् प्रत्यय करने पर निष्पन्न होता है जिसका अर्थ देखना है किन्तु यहाँ मोक्षमार्ग का प्रकरण होने से इसका श्रद्धान अर्थ ग्रहण किया गया है। क्योंकि धातुओं के अनेक अर्थ होते हैं। दर्शन शब्द भी जैनागमों 1. ज्ञानार्णव, 6/3. 3. सर्वार्थसिद्धि, 1/1/5. 2. वही, 6/4. 4. राजवार्तिक, 1/2/1/19. . 80