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________________ सिद्ध होते हैं। अतः समाज में एक स्वस्थ आर्थिक-चिन्तन का होना अति आवश्यक है। यह प्रसन्नता का विषय है कि श्री दिलीप धींग ने अपने शोध-प्रबन्ध की विषयवस्तु के रूप में प्रमुख जैनागमों में प्रतिपादित आर्थिक चिन्तन' को अपने समीक्षात्मक अध्ययन के लिए चुना। डॉ. दिलीप एक गंभीर प्रकृति एवं अध्ययनशील व्यक्तित्व के धनी हैं तथा तदनुरूप ही उन्होंने प्रस्तुत शोध-कार्य को अत्यन्त श्रमपूर्वक समग्र उपलब्ध साहित्य का आलोड़न करके निष्कर्ष तक पहुँचाया है। इस शोध-प्रबन्ध में जहाँ उन्होंने जैन वांग्मय से निर्वृहित अर्थ सम्बन्धी अवधारणाओं, अर्थोपार्जन के प्रमुख .. साधनों, मुद्रा, विनिमय, राजस्व और कर-प्रणालियों को पाठकों के सम्मुख रखने का महत् प्रयास किया है, वहीं जैनागमों व व्याख्या-साहित्य में वर्णित कृषि, पशुपालन, उद्यानिकी, वानिकी, खनन, व्यापार, व्यवसाय, वाणिज्य तथा आयातनिर्यात जैसे विषयों को भी पूरी गम्भीरता से प्रस्तुत किया है। __ अर्थानुशासन किसी भी समाज की नैतिकता का आईना होता है। इस सन्दर्भ में डॉ. धींग ने इस शोध-प्रबन्ध में श्रावकाचार के आर्थिक पहलुओं का गहन परीक्षण किया है तथा अहिंसा, सत्य, अचौर्य, परिग्रह-परिमाण जैसे व्रतों की सम्यक् समीक्षा की है। इसके अतिरिक्त आगमिक सिद्धात और दर्शन के अर्थशास्त्रीय पक्ष को अभिनव ढंग से प्रस्तुत किया है। अध्ययन के समापन में उहोंने आगमिक व आगमकालीन अर्थव्यवस्था की मध्ययुगीन और आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं से तुलना करके इस शोध-प्रबध की उपयोगिता बहुगुणित कर दी है। डॉ. धींग से मैं उनके बाल्यकाल से ही परिचित हूँ तथा उनके धर्मानुराग, अध्ययनशीलता व विनम्रता जैसे गुणों का प्रशंसक भी हूँ। इस ग्रन्थ में मैं उनके व्यक्तित्व के एक नये आयाम - शोधप्रियता को देख रहा हूँ। यह लेखक की शोध विषयक प्रथम कृति है; फिर भी इसमें उनकी लेखन क्षमता, भाषा पटुता व भाव प्रवणता का स्तुत्य समावेश हुआ है। मैं आशा करता हूँ कि वे अपनी इस विधा का उत्तरोत्तर विकास करेंगे तथा हमें उनकी सबल लेखनी से और भी रचनाएँ पढ़ने को मिलती रहेंगी। मैं उनकी श्रुताराधना के मंगलमय होने की शुभकामना करता हूँ। शुभास्ते पंथानः स्यु। - डॉ. (कर्नल) दलपतसिंह बया श्रेयस (xxii)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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