________________ Recence नियुक्ति गाथा-1 (भूमिका) 29999900 घोंच से हवा फूंकता है तो इस छेद की पत्ती के किनारों से टकराती है जिससे ध्वनि पैदा होती है। वादक अपनी अंगुलियों से रन्ध्रों को खोलते, बंद करते समय सुरीली ध्वनि निकालता है। इस किस्म , की वंशी को उत्तर भारत में बांसुरी कहा जाता है। (13) संख (शंख)- इसका उल्लेख भी राजप्रश्नीय, उत्तराध्ययन, स्थानाज, दशाश्रुतस्कन्ध, . नन्दीसूत्र, अनुयोगद्वार आदि आगमों में मिलता है। शंख भारत का अति प्राचीन सुषिर वाद्य है। " ca आगम युग से ही इसका प्रयोग धार्मिक तथा युद्ध आदि में होता है। श्रीकृष्ण का पाञ्चजन्य शंख - प्रसिद्ध है। प्राचीन काल में शंख के अनेक रूप प्रचलित रहे हैं। आधुनिक काल में शंख का प्रयोग , धार्मिक उत्सवों में ही प्रायः होता देखा जाता है। शंख एक सामुद्रिक जीव का ढांचा है, जो समुद्र से . निकाला जाता है। इसकी दो जातियां 'दक्षिणावर्त' तथा 'वामावर्त' नाम से प्रसिद्ध है। संगीत पारिजात ca के अनुसार वाद्योपयोगी शंख का पेट बारह अंगुल का होता है। उसमें मुख का छेद बेर के बीज के " ca बराबर होता है तथा उसके ऊपर पतली धातु का कलश बनाते हैं। इस कलश को मुख में रखकर " शंख को वाद्य की भांति बजाया जाता है। . (12) पणवः (प्रणव)- इस वाद्य का उल्लेख निशीथ, दशाश्रुतस्कन्ध, राजप्रश्नीय, औपपातिक , व प्रश्नव्याकरण -इन आगमों में प्राप्त होता है। पणव एक अति प्राचीन अवनद्ध वाद्य था। इसे . अनुवादकों ने आधुनिक समय का ढोल बताया है। महर्षि भरत ने मृदंग के बाद पणव को ही सबसे / << अधिक महत्त्व दिया। महर्षि भरत के अनुसार पणव का आकार इस प्रकार है- सोलह अंगुल लम्बा, 7 'ca मध्य भाग भीतर की ओर दबा, जिसका विस्तार आठ अंगुल तथा जिसके दोनों मुख पांच अंगुल के , हों, वह प्रणव है। आधे अंगूठे के समान मोटा उसका काठ होता है और भीतर का खोखला भाग चार ca अंगुल के व्यास का होता है। प्रणव के दोनों मुख कोमल चमड़े से मढ़े जाते थे, जिन्हें सुतली से कस 1 ca दिया जाता था। सुतलियों का यह कसाव कुछ ढीला रखा जाता था जिसे वादन के समय बायें हाथ से " & मध्य भाग को दबाकर तथा ढीला कर आवश्यकतानुसार ऊंची-नीची ध्वनि निकाली जाती थी। युग , परिवर्तन के साथ-साथ वाद्यों की महत्ता में भी परिवर्तन आया, जिसके परिणाम स्वरूप पणव वाद्य आज कहार, अहीर और भांड जाति का ही वाद्य बनकर रह गया। दक्षिण भारत में अब भी कहीं- 1 c. कहीं मंदिरों में इसका प्रयोग देखने को मिलता है, किन्तु उत्तर भारतीय शिव मंदिरों में इसे बड़े " आकार का डमरू माना जाता है। 33333333333333222332222222 -3333333333333333333 (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r) 31