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________________ 999999999999 - -RRRRRRR नियुक्ति गाथा-1 (भूमिका) विशेषार्थ वाद्यों के परिचय देने से पूर्व यह जान लेना जरूरी है कि वाद्यों के प्रमुख चार प्रकार हैं- तत, , 4 वितत (अवनद्ध), घन तथा सुषिर। तारों से स्वर उत्पन्न करने वाले -सितार आदि वाद्य 'तत' हैं। चमड़े से मढ़े हुए वाद्य- मृदंग, ढोल आदि 'वितत' (अवनद्ध), वाद्य हैं। आपस में टकरा कर स्वर उत्पन्न करने वाले वाद्य 'घन' हैं, जैसे ताल, मंजीरा आदि। सुषिर वाद्यों में वंशी (बांसुरी) व शंख आदि आते है। cm हैं जिन्हें फूंक व हवा से बजाया जाता है। इनमें तत और वितत स्वरवाद्य हैं, और वितत और घन - 3 ये लय वाद्य हैं। वृत्तिकार ने 'नन्दी' के रूप में बारह वाद्यों का निर्देश किया है। अतः प्रत्येक वाद्य (और व उसकी ध्वनि) मङ्गलरूप है- ऐसा समझना चाहिए। साथ ही इन सब की सामूहिक ध्वनि को " 'द्रव्यनन्दी' के रूप में निर्दिष्ट किया है, जिसे संगीताचार्यों ने 'नन्दीघोष' कहा है। . नंदिघोषः- प्राचीन संगीत ग्रंथों में पंच महाशब्द और पंच वाद्य का भी वर्णन मिलता है। पंच 3 महाशब्द में तुरही, घड़ियाल, ढोल, हुडक्का और शहनाई -इन के संयुक्त वादन होते थे। कर्नाटक, a केरल और उड़ीसा में आज भी पंच वाद्य का प्रचलन है। (1) भंभाः- यह ढोलनुमा द्विमुखी वाद्य विजयसार के काठ से बनता है। इसकी लम्बाई एक " हाथ तथा परिधि 39 अंगुल की होती है। इसके दोनों मुख तेरह-तेरह अंगुल के होते हैं। दोनों मुखों से को कड़े चमड़े से लपेटा जाता है तथा उसमें सात-सात छेद कर चमड़े से मढ़ दिया जाता है। उन छेदों " ra में मोटा डोरा लगाया जाता है। इसको बांयी बगल में दबाकर दाहिने हाथ से डण्डी द्वारा बजाया , जाता है। इस वाद्य का उल्लेख राजप्रश्नीय, जीवाजीवाभिगम, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, ज्ञाताधर्मकथा -इन / आगमों में प्राप्त होता है। सामान्यतः इसे ढक्का, 'ढाक' (या ढंका) का पर्याय मान कर एक अवनद्ध " a वाद्य के रूप में जाना जाता है। बंगाल में काली पूजा आदि के अवसर पर कासर (घंटा) के साथ व 'ढाक' विशेष रूप से बजाया जाता है। कुछ आचार्यों ने इसे एक वीणा जैसा वाद्य बता कर इसे एक . व घन वाद्य भी माना है। a (2) मुकुंदः- यह एक अति प्राचीन मृदंग या भुरज सरीखा अवनद्ध वाद्य है, जिसे पखावज , भी कहा जाता है और जिसकी अनेक किस्में अलग-अलग क्षेत्रों में पाई जाती हैं। भक्ति और कीर्तन, के साथ इस वाद्य का गहरा संबंध है। कहते हैं- चैतन्य देव महाप्रभु का यह प्रिय वाद्य था। यह वाद्य लगभग पौन मीटर लम्बा होता है, दूसरे मुख की अपेक्षा एक मुख काफी चौड़ा होता है। यह लकड़ी या पकी मिट्टी का होता है और मृदंग की भांति कई पर्तों वाले दो मुख का होता है। लकड़ी के बने " a मृदंग को पखावज कहते हैं, जबकि पकी मिट्टी से बना मृदंग कहा जाता है- ऐसा भेद भी बताया , * गया है। यह बंगाल में खोल, श्री खोल, तथा मणिपुर व नागालैण्ड में मुकुन्द, मकंद, पुंग आदि नामों " से भी जाना जाता है। 333332323233333333333333333332223333333333333 &&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&& &&&&&& 88888883 (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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