________________ -RRRRRRR नियुक्ति-गाथा-1 (भूमिका) | द्रव्यंमङ्गल / जो क्षीण हो जाए, वह शरीर होता है। 'ज्ञ' (ज्ञानयुक्त) का शरीर ही द्रव्यमङ्गल & हो, अथवा जो ज्ञशरीर हो और द्रव्यमङ्गल हो-इस प्रकार समास है और 'ज्ञशरीर द्रव्यमगल' -यह शब्द निष्पन्न होता है। 3333333333333333333333333333333333 (हरिभद्रीय वृत्तिः) एतदुक्तं भवति- मङ्गलपदार्थज्ञस्य यच्छरीरमात्मरहितं तदतीतकालानुभूततद्भावानुवृत्त्या सिद्धशिलादितलगतमपिघृतघटादिव्यायेन नोआगमतो ज्ञशरीरद्रव्यमङ्गलमिति, a मङ्गलज्ञानशून्यत्वाच्च तस्य, इह सर्वनिषेध एव नोशब्दः।तथा भव्यो योग्यः, मङ्गलपदार्थ ज्ञास्यति, यो न तावद्विजानाति स भव्य इति, तस्य शरीरं भव्यशरीरं, भव्यशरीरमेव द्रव्यमङ्गलम्। a अथवा भव्यशरीरं च तद्रव्यमङ्गलं चेतिसमास इति। a अयं भावार्थः-भाविनीं वृत्तिमङ्गीकृत्य मङ्गलोपयोगाधारत्वात् मधुघटादिन्यायेनैव : तत् बालादिशरीरं भव्यशरीरद्रव्यमङ्गलमिति, नोशब्दः पूर्ववत्।ज्ञशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्तं च / ( द्रव्यमङ्गलं संयमतपोनियमक्रियानुष्ठाता अनुपयुक्तः, आगमतोऽनुपयुक्तद्रव्यमङ्गलवत्।तथा 1 यछरीरमात्मद्रव्यं वा अतीतसंयमादिक्रियापरिणामम्, तच्च उभयातिरिक्तं द्रव्यमङ्गलम्, a ज्ञशरीरद्रव्यमङ्गलवत्, तथा यद् भाविसंयमादिक्रियापरिणामयोग्यं तदपि उभयव्यतिरिक्तम्, 0 a भव्यशरीरद्रव्यमङ्गलवत्।तथा यदपि स्वभावतःशुभवर्णगन्धादिगुणं सुवर्णमाल्यादि, तदपि हि . भावमङ्गलपरिणामकारणत्वाद् द्रव्यमङ्गलम् / अत्रापि नोशब्दः सर्वनिषेध एव द्रष्टव्यः। इत्युक्तं a द्रव्यमङ्गलम्। ____ (वृत्ति-हिन्दी-) तात्पर्य यह है- जैसे 'घी का घड़ा' (घी के न रहने पर भी ‘घी का , घड़ा' ही कहा जाता है,) या ‘मधुकुम्भ' (शहद निकाल दिये जाने पर भी 'मधुकुम्भ' ही कहा , जाता है, उसी) की तरह मङ्गल-पदार्थ के ज्ञाता का शरीर आत्मा से शून्य हो जाने पर भी , है 'नो-आगम द्रव्यमङ्गल' हो जाता है, क्योंकि वह मङ्गल-सम्बन्धी ज्ञान से रहित है। यहां 'नो' & शब्द सर्व-निषेधवाचक रूप से प्रयुक्त हुआ है। भव्य यानी भविष्य में होने योग्य (होने की << योग्यता वाला), अर्थात् जो मङ्गल पदार्थ को जानेगा, किन्तु जानने से पूर्व, जो उसके ज्ञान , a से रहित है, वह 'भव्य' है। उसका शरीर ही द्रव्यमङ्गल हो अथवा भव्यशरीर हो और द्रव्यमङ्गल हो- इस अर्थ में समास हुआ है (और 'भव्यशरीर द्रव्यमङ्गल' -यह शब्द , निष्पन्न हुआ है)। - @ @ @ @ @@ReBR@@ @cr@900 21