________________ RRRRRRR 2020009999 -2222222233333333333333333333333333333333333330 नियुक्ति गाथा-1 (भूमिका) (हरिभंद्रीय वृत्तिः) तच्च नामादि चतुर्विधम्, तद्यथा-नाममङ्गलम् 1, स्थापनामङ्गलम् र, द्रव्यमङ्गलम् 3, 4 भावमङ्गलम् 4 चेति।तत्र यद्वस्तुनोऽभिधानं स्थितमन्यार्थे तदर्थनिरपेक्षम्। पर्यायानभिधेयं (च) नाम यादृच्छिकं च तथा॥ ___ अस्यायमर्थः- 'यद्' 'वस्तुनो' जीवाजीवादेः 'नाम' यथा गोपालदारकस्येन्द्र इति, : & 'स्थितमन्यार्थे' इति परमार्थतः त्रिदशाधिपेऽवस्थानात्, 'तदर्थनिरपेक्षम्' इति इन्द्रार्थनिरपेक्षम्, कथम्? तत्र गुणतो वर्त्तत इति, इन्दनादिन्द्रः 'इदि परमैश्वर्ये' इति, तस्य परमैश्वर्ययुक्तत्वात्, . गोपालदारके तु तदर्थशून्यमिति।तथा पर्यायैः- शक्रपुरन्दरादिभिः नाभिधीयत इति, इह नामव नामवतोरभेदोपचाराद्-गोपालवस्त्वेव गृह्यते, एवंभूतं नामेति।तथाऽन्यत्रावर्त्तमानमपि किञ्चिद् & यादृच्छिकं डित्यादिवत्, चशब्दात् यावद्दव्यभावि च प्रायश इति। यत्तु सूत्रोपदिष्टं “णामं // ca आवकहियं", तत् प्रतिनियतजनपदसंज्ञामाश्रित्येति।नाम च तन्मङ्गलं चेतिसमासः, तत्र यत् " जीवस्याजीवस्योभयस्य वा मङ्गलमिति नाम क्रियते तन्नाममङ्गलम् / जीवस्य यथा- " सिन्धुविषयेऽग्निर्मङ्गलमभिधीयते, अजीवस्य यथा- श्रीमल्लाटदेशे दवरकवलनकं मङ्गलमभिधीयते, उभयस्य यथा-वन्दनमालेति। a (वृत्ति-हिन्दी-) वह मङ्गल नाम आदि भेदों से चार प्रकार का है। जैसे- (1) नाममङ्गल, (2) स्थापना मङ्गल, (3) द्रव्यमङ्गल और (4) भावमङ्गल। 4 . इनमें 'नाम' वह है जो ‘यदृच्छा' (अपनी मर्जी) से किसी का वाचक बना दिया , जाता है, अपने वास्तविक अर्थ से भिन्न अर्थ में प्रयुक्त होता है, अपने वास्तविक अर्थ से , निरपेक्ष (शून्य होकर विवक्षित अर्थ में) रहता है, और उसका पर्यायों से कथन नहीं किया। जाता है। - इसका अर्थ इस प्रकार है- जो जीव या अजीव आदि का नाम होता है, जैसे ग्वाले , के लड़के का वाचक 'इन्द्र' यह नाम, वह (वास्तविक इन्द्र से) अन्य (ग्वाले) अर्थ में स्थित है 4 (प्रयुक्त), परमार्थ रूप से (वस्तुतः) देवताओं के अधिपति के अर्थ में स्थित होता है, किन्तु " 8. उस अर्थ से, देवाधिपति -इस इन्द्रार्थ से निरपेक्ष होता है। किस प्रकार? 'इन्द्र' यह पद गुण " के आधार पर प्रयुक्त है, क्योंकि इन्द्र वह होता है जो इन्दन यानी परमैश्वर्य ये युक्त हो, किन्तु / - Rece@@cre@cROct@9082@Reme