________________ | Maacance नियुक्ति-गाथा-1 (भूमिका).. PORRORD 33333333333333333333333. (हरिभद्रीय वृत्तिः) a अतः प्रयोजनमभिधेयं संबन्धो मालं च यथावसरं प्रदर्श्यत इति। तत्र प्रयोजनं . तावत् परापरभेदभिन्नं द्विधा, पुनरेकैकं कर्तृश्रोत्रपेक्षया द्विथैव। a (वृत्ति-हिन्दी-) इसलिए प्रस्तुत शास्त्र-रचना से सम्बन्धित 1. प्रयोजन, 2. अभिधेय/ विषय-वस्तु, 3. अभिधेय व प्रयोजन -इन दोनों का शास्त्र से सम्बन्ध, 4. मङ्गलाचरण-, इनका अवसरानुरूप कथन कर रहा हूं। इनमें प्रयोजन तो दो प्रकार का होता है- (1) : परम/उत्कृष्ट प्रयोजन और (2) अपर ( अर्थात् परम प्रयोजन का साधक) प्रयोजन। (चूंकि : कोई भी रचना कर्ता व श्रोता-दोनों को लाभान्वित करती है, अतः) इन दोनों में प्रत्येक के . a भी दो-दो भेद होते (ही) हैं- (1) कर्ता से सम्बद्ध प्रयोजन, तथा (2) श्रोता से सम्बद्ध , a प्रयोजन। . (हरिभद्रीय वृत्तिः) तत्र द्रव्यास्तिकनयालोचनायामागमस्य नित्यत्वात् कर्तुरभाव एव, “इत्येषा द्वादशाङ्गी . न कदाचिन्नासीत्, न कदाचिन्न भविष्यति न कदाचिन्न भवति" इतिवचनात् / / व पर्यायास्तिकनयालोचनायां चानित्यत्वात्तत्सद्भाव इति। तत्त्वालोचनायां तु " . सूत्रार्थोभयरूपत्वादागमस्य अर्थापेक्षया नित्यत्वात् सूत्ररचनापेक्षया चानित्यत्वात् कवञ्चित् . कर्तृसिद्धिरिति। a (वृत्ति-हिन्दी-) 'द्रव्यास्तिक नय' की विचारणा में आगम नित्य है, इसलिए उस " a (आगम) का कोई कर्ता नहीं है, क्योंकि (नन्दी सूत्र, सूत्र सं.114 में) इस अभिप्राय वाला , a (आगमिक) कथन मिलता है- “यह द्वादशाही कभी नहीं थी- ऐसा नहीं है, भविष्य में नहीं होगी- ऐसा भी नहीं, वर्तमान में नहीं है- ऐसा भी नहीं है।" पर्यायास्तिक नय के : परिप्रेक्ष्य में विचार करें तो 'आगम' अनित्य है, इसलिए आगम के कर्ता का सद्भाव है। (चूंकि प्रत्येक 'नय' समग्र वस्तु के एकदेश को विषय करता है, इसलिए स्याद्वादश्रुत रूपी " * 'प्रमाण' के परिप्रेक्ष्य में) अब पूर्ण 'तत्त्व' की विचारणा करते हैं। चूंकि 'आगम' सूत्रात्मक व . . अर्थात्मक-दोनों होता है, अतः वह 'अर्थ' की दृष्टि से नित्य है और (गणधरों द्वारा की जाने , वाली) सूत्र-रचना की अपेक्षा से अनित्य भी है, इस दृष्टि से आगम का 'स्यात् (कथंचित्) , कर्ता है' -यह सिद्ध होता है।) (r)(r)(r)(r)(r)(r)00000000000000