________________ (r)(r)(r)(r)(r)n@ca@@ce@@@ce@@ आचार्य भद्रबाहु श्रुतकेवली-रचित |आवश्यक नियुक्ति॥ [आचार्य हरिभद्र सूरि कृत वृत्ति' से युक्त] .. श्री गणधरेन्द्रो विजयतेतराम्। [-गणघरों में इन्द्र विजयवन्त हों।] 223222222222322232322233333333333333333333333 - (वृत्तिकार-कृत मङ्गलाचरण) प्रणिपत्य जिनवरेन्द्र, वीरं श्रुतदेवतां गुरून साधून। आवश्यकस्य विवृति, गुरूपदेशादहं वक्ष्ये / / (हिन्दी अर्थ-) जिनवरेन्द्र (तीर्थंकर) महावीर, श्रुत-देवता, गुरुजनों एवं साधु (परमेष्ठी) को प्रणाम कर, अपने गुरु-वर्य के उपदेश से, मैं 'आवश्यक' सूत्र की विवृति (व्याख्या) कर ca रहा हूं 1 // . विशेषार्थ4 (1) जिनवरेन्द्र वीर:-जिन अवधिजिन आदि, उनमें वर-श्रेष्ठ='केवली', उनमें इन्द्र श्रेष्ठ, अर्थात् तीर्थंकर। वीर= महावीर। जैन परम्परा में पंच परमेष्ठियों को मङ्गल रूप माना गया है, और इनका स्तवन-वंदन भी 7 मङ्गल रूप होता है। ग्रन्थ के प्रारम्भ में अर्हद् आदि देवों से अन्य भी कुछ देवताओं का ध्यान, स्मरण : व वन्दन किया जाता है। शास्त्रकारों ने ऐसे वन्दनीय देवताओं के तीन प्रकार माने हैं। उदाहरणार्थ (1) अभीष्ट देवता-अभियुक्तों अर्थात् श्रेष्ठ-पुरुषों द्वारा जिनका यजन, पूजन किया जाता हो, वह सर्वसम्मत देव ही अभीष्ट देवता है, जैसे- जिनेन्द्र, तीर्थंकर आदि। - @nece@ Bce@ce@ @ce@009@ce@900