________________ -aceaeeeeee 999999999999 ) -233333333333333333333333333333333333333333333 नियुक्ति गाथा-79 और उत्कृष्ट क्षेत्र केवली-समुद्घात की दृष्टि से (समस्त) लोक ही है, इसी तरह स्पर्शना को / / ca भी समझना चाहिए। काल की दृष्टि से यह सादि-अपर्यवसित है। केवलज्ञान में 'अन्तर' >> नहीं होता, क्योंकि वह प्रतिपाती नहीं होता। भाग द्वारः- मति आदि ज्ञानों की तरह (केवलज्ञान , के 'भाग' द्वार का निरूपण) समझना चाहिए। भाव- मात्र क्षायिक भाव ही इसमें होता है। " अल्पबहुत्वः- यह भी मतिज्ञान की तरह ही समझना चाहिए। (हरिभद्रीय वृत्तिः) उक्तं केवलज्ञानम् / तदभिधानाच्च नन्दी, तदभिधानान्मङ्ग लमिति। एवं तावन्मङ्गलस्वरूपाभिधानद्वारेण ज्ञानपञ्चकमुक्तम् / इह तु प्रकृते श्रुतज्ञानेनाधिकारः, तथा च // नियुक्तिकारेणाभ्यधायि (नियुक्तिः) इत्थं पुण अहिगारो सुयनाणेणं जओ सुएणं तु। - ‘सेसाणमप्पणोऽवि अ अणुओगु पईवदिठ्ठन्तो // 79 // [संस्कृतच्छायाः-इत्थं पुनः अधिकारः श्रुतज्ञानेन यतः श्रुतेन तु। शेषानामात्मनोऽपि च अनुयोगः प्रदीपदृष्टान्तः॥॥ ___ (वृत्ति-हिन्दी-) इस प्रकार, 'केवलज्ञान' का निरूपण हो गया। केवलज्ञान के 7 निरूपण के साथ ही, (पांच ज्ञान रूप) नन्दी का कथन, और उसके साथ ही मङ्गल का , कथन भी पूर्ण हुआ। इस रीति से, मङ्गल-स्वरूप के कथन के माध्यम से 'ज्ञान-पञ्चक' a (पांचों ज्ञानों) का निरूपण समाप्त हो गया। यहां प्रकृत में, 'श्रुतज्ञान' का अधिकार (प्रकरण) चल रहा है, इसीलिए नियुक्तिकार कह रहे हैं (79) (नियुक्ति-हिन्दी-) इस प्रकार, (यहां तो) अधिकार 'श्रुतज्ञान' का है। कारण यह है - कि श्रुतज्ञान के माध्यम से शेष ज्ञानों का तथा स्वयं का भी अनुयोग (व्याख्यान) किया जाता है ल है, यहां प्रदीप का उदाहरण (ध्यान में रखने योग्य) है। &&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&& - 8088(r)(r)cence@@@@@@@ 303