________________ REEN CA CR CA CR ca Ce c& श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 0 0 0 0 0 0 (वृत्ति-हिन्दी-) 'केवल ज्ञान' उत्पन्न होने के अनन्तर तीर्थंकर इस लोक में प्राणियों "ca पर अनुग्रह-हेतु जो उपदेश करते हैं, उसका कारण है- तीर्थंकर-नामकर्म का उदय / यहां & अव्युत्पन्न बुद्धि (अल्पमति) वालों को यह मति-भ्रम (प्रश्न-) हो सकता है कि ध्वनि रूप, 9 (उपदेश तो) श्रुतरूप होता है और श्रुत की उत्पत्ति भावश्रुत-पूर्वक होती है, किन्तु (केवली 1 ल तीर्थंकर को) श्रुतज्ञान तो असंभव है, अतः यह (उपदेशदान) अनिष्ट आपत्ति रूप है। उक्त " ca मतिभ्रम न हो -इसको दूर करने हेतु आगे की गाथा कह रहे हैं (78) (नियुक्ति-हिन्दी-) तीर्थंकर 'केवलज्ञान' द्वारा पदार्थों को जानकर, उनमें जो प्रज्ञापना (निरूपण) के लायक होते हैं, उनका भाषण (कथन) करते हैं। यह (कथन) उनका 'वारयोग', CR (वचनयोग) होता है, (किन्तु) जो (श्रोताओं के लिए) 'शेषश्रुत' (अर्थात् द्रव्यश्रुत) हो जाता है। : (हरिभद्रीय वृत्तिः) (व्याख्या-) इह तीर्थकरः केवलज्ञानेन ‘अर्थान्' धर्मास्तिकायादीन् मूर्तामूर्तान् / CM अभिलाप्यानभिलाप्यान् ‘ज्ञात्वा' विनिश्चित्य, केवलज्ञानेनैव ज्ञात्वा न तु श्रुतज्ञानेन, तस्य , क्षायोपशमिकत्वात्, केवलिनश्च तदभावात्, सर्वशुद्धौ देशशुद्ध्यभावादित्यर्थः।ये 'तत्र' तेषामर्थानां / ca मध्ये, प्रज्ञापनं प्रज्ञापना, तस्या योग्याः प्रज्ञापनायोग्याः, 'तान् भाषते तानेव वक्ति नेतरानिति। प्रज्ञापनीयानपि न सर्वानेव भाषते, अनन्तत्वात्, आयुषः परिमितत्वात्, वाचः क्रमवर्तित्वाच्च। " किं तर्हि?, योग्यानेव गृहीतृशक्त्यपेक्षया यो हि यावतां योग्य इति। (वृत्ति-हिन्दी-) (व्याख्या-) यहां तीर्थंकर केवलज्ञान' से, पदार्थों को, अर्थात् मूर्त व . अमूर्त अभिलाप्य (कथनीय) व अनभिलाप्य धर्मास्तिकाय आदि को, निश्चय के साथ , CM 'केवलज्ञान' से जानकर, अर्थात् उन्हें श्रुतज्ञान से नहीं जानते क्योंकि वह क्षायोपशमिक : ल होता है (क्षायिक ज्ञान होने पर, वह श्रुतज्ञान) केवली में नहीं रहता, क्योंकि सर्वशुद्धि होने , पर देश-शुद्धि नहीं रहती -यह तात्पर्य है। उनमें, अर्थात् उन ज्ञेय पदार्थों के मध्य, जो " << प्रज्ञापन -प्रज्ञापना या निरूपणा के योग्य हैं, उन्हें, यानी उन्हें ही (केवली) कहते हैं, अन्य " & (पदार्थों) को नहीं कहते। और सभी प्रज्ञापनीय पदार्थों को भी नहीं कह पाते, क्योंकि वे , C (पदार्थ) अनन्त होते हैं और आयु सीमित होती है एवं वाणी क्रम से ही प्रवृत्त होती है। तो . * क्या कहते हैं? (उत्तर-) ग्रहीता की सामर्थ्य की दृष्टि से, जितना उन ग्रहीता (श्रोता) के लिए " योग्य होता है, उतना ही वे कहते हैं। - 298 @@@@@@c(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r) 888888888888888888888888888888888888888888888