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________________ | नियंक्ति-माथा-76....ORapooppa असंख्येयवर्षायुष्क मनुष्य अपर्याप्तक मनुष्य मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि असंयत और संयतासंयत संख्येयवर्षायुष्क मनुष्य पर्याप्तक मनुष्य सम्यग्दृष्टि मनुष्य संयत प्रमत्त -अप्रमत्त 22222222222222222332 / 22 अनृद्धिप्राप्त ऋद्धिप्राप्त मनःपर्ययज्ञान आम!षधि ऋद्धियों से सम्पन्न व्यक्ति को ही प्राप्त होता है। (नन्दी) चूर्णिकार, ने एक मतान्तर का भी उल्लेख किया है कि नियमतः अवधिज्ञानी को ही मनःपर्याय ज्ञान प्राप्त हो , ca सकता है। मनःपर्यवज्ञान के दो प्रकार बतलाए गए हैं- ऋजुमति और विपुलमति। चूर्णि के अनुसार, ऋजुमति मनःपर्यवज्ञान मन के पर्यायों को जानता है। किन्तु अत्यधिक विशेषण से विशिष्ट पर्यायों a को नहीं जानता, जैसे अमुक व्यक्ति ने घट का चिन्तन किया, इतना जान लेता है, किन्तु घट से - सम्बद्ध अन्य पर्यायों को नहीं जानता। विपुलमति मनःपर्यवज्ञान मन के पर्यायों को बहु विशेष रूपों , से जानता है। जैसे अमुक ने घट का चिन्तन किया, वह घट अमुक देश, अमुक काल में बना है, आदि / विशिष्ट पर्यायों से युक्त घट को विपुलमति जान लेता है। - ऋजुमति और विपुलति में अंतर एक उदाहरण से समझना चाहिए।जैसे दो छात्रों ने एक ही , विषय की परीक्षा दी हो और उत्तीर्ण भी हो गये हों। किन्तु एक ने सर्वाधिक अंक प्राप्त कर प्रथम श्रेणी 2. प्राप्त की और दूसरे ने द्वितीय श्रेणी। स्पष्ट है कि प्रथम श्रेणी प्राप्त करने वाले का ज्ञान कुछ अधिक रहा। और दूसरे का उससे कुछ कम / ठीक इसी तरह ऋजुमति की अपेक्षा विपुलमति का ज्ञान अधिकतर, .. 4 विपुलतर एवं विशुद्धतर होता है। ऋजुमति तो प्रतिपाती भी हो सकता है अर्थात् उत्पन्न होकर नष्ट हो सकता है, किन्तु विपुलमति नहीं गिरता। विपुलमति मनःपर्यवनानी उसी भव में केवलज्ञान प्राप्त ce करता है। व मनःपर्ययज्ञान का द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव -इन चारों दृष्टियों से स्वरूप-निदर्शन इस ce प्रकार है (1) द्रव्यतः- मनःपर्यवज्ञानी मनोवर्गणा के मनरूप में परिणत अनन्त प्रदेशी स्कन्धों की . पर्यायों को स्पष्ट रूप से देखता व जानता है। 2222223222223333333 @ @ @ @ @ @ @ @ @92890@ @900 291
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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