________________ -Rememeena 29999999999000 नियुक्ति गाथा-71-75 नहीं होता)। आगे का वाक्य इस प्रकार पूरा होगा- और वे (सभी राजा) मधुमथन (मधु ce नामक दैत्य का वध करने वाले) अर्थात् वासुदेव को खींच नहीं पाते। 4 (हरिभद्रीय वृत्तिः) ___चक्रवर्तिनस्त्विदं बलं-द्वौ षोडशकौ, द्वात्रिंशदित्येतावति वाच्ये द्वौ षोडशकावित्यभिधानं " चक्रवर्त्तिनो वासुदेवाद् द्विगुणर्द्धिख्यापनार्थम्, राजसहसाणीति गम्यते / सर्वबलेन सह . शृङ्खलानिबद्धम् आकर्षन्ति चक्रवर्तिनम् अगडतटे स्थितं सन्तम्, गृहीत्वा शृङ्खलामसौ वामहस्तेन , आकर्षतां भुजीत विलिम्पेत वा, चक्रघरं ते न शक्नुवन्ति आक्रष्टुमिति वाक्यशेषः। यत् केशवस्य तु बलं तद्विगुणं भवति चक्रवर्तिनः, 'ततः' शेषलोकबलाद् ‘बला' बलदेवा बलवन्तः, तथा निरवशेषवीर्यान्तरायक्षयाद् अपरिमितं बलं येषां तेऽपरिमितबलाः।क एते? -जिनवरेन्द्राः। अथवा ततः- चक्रवर्तिबलाद् बलवन्तो जिनवरेन्द्राः, कियता बलेनेति, आह-अपरिमितबला इति।एता हि कर्मोदयक्षयक्षयोपशमसव्यपेक्षाः प्राणिनां लब्धयोऽवसेया 4 इति // 71-75 // c (वृत्ति-हिन्दी-) चक्रवर्ती का बल इस प्रकार है- दो सोलह यानी बत्तीस / सीधे 'बत्तीस' न कह कर गाथा में 'दो सोलह' इसलिए कहा ताकि वासुदेव से चक्रवर्ती की दुगुनी .. ca ऋद्धि है- यह सूचित हो / बत्तीस यानी बत्तीस हजार राजा- इतना प्रकरणवश सुगम्य हो / ल जाता है। वे समस्त बल (यानी पूरे सैन्य) के साथ सांकल में बंधे चक्रवर्ती को -जो कुंए की 4 मेड़ पर बैठे हैं- खींचते हैं। किन्तु चक्रवर्ती उस सांकल को बाएं हाथ से पकड़े हुए रहते हैं, 4 और भोजन में या अन्य कार्य में (बिना किसी उद्वेग के ही) लिप्त रहते हैं, वे (राजा) उन चक्रवर्ती को खींच नहीं पाते -इस प्रकार वाक्य पूर्ण होता है। जो केशव का बल है, उससे दुगुना बल चक्रवर्ती का होता है, उससे भी अर्थात् शेष & सभी (पूर्वोक्त) लोगों के बल से (अधिक) बलदेव होते हैं, और समस्त वीर्यान्तराय के क्षय से a अपरिमित बल के धारक होते हैं, कौन? (उत्तर-) जिनेन्द्र भगवान् / अथवा चक्रवर्ती के बल से भी जिनेन्द्र अधिक बली होते हैं। कितना अधिक बल उनमें होता है? (उत्तर-) अपरिमित 4 बल वाले होते हैं। प्राणियों की इन सभी लब्धियों को (वीर्यान्तराय) कर्म के उदय, क्षय व c& क्षयोपशम पर आधारित जानें 71-75 // (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)CRO900900908 (r) 285 285 9