________________ -RRRRRRRRce න ග හ හ හ හ හ හ හ - ------ 3 नियुक्ति-गाथा-71-15 (हरिभद्रीय वृत्तिः) इह वासुदेवत्वं चक्रवर्त्तित्वं तीर्थकरत्वं च ऋद्धयः प्रतिपादिताः, तत्र , & तदतिशयप्रतिपादनायेदं गाथापञ्चकं जगाद नियुक्तिकारः (नियुक्तिः) सोलस रायसहस्सा सवबलेणं तु संकलनिबद्धं / अंछंति वासुदेवं अगडतडं मी ठियं संतं // 71 // घित्तूण संकलं सो वामगहत्थेण अंछमाणाणं / भुजिज्ज व लिंपिज्ज व महुमहणं ते न चायंति // 72 // दोसोला बत्तीसा, सव्वबलेणं तु संकलनिबद्धं / अंछंति चक्कवळिं, अगडतडंमी ठियं संतं // 73 // चित्तूण संकलं सो, वामगहत्थेण अंछमाणाणं। भुजिज्ज व लिंपिज्ज व, चक्कहरं ते न चायति // 74 // जं केसवस्स उ बलं, तं दुगुणं होइ चक्कवट्टिस्स। तत्तो बला बलवगा, अपरिमियबला जिणवरिंदा // 79 // ca [संस्कृतच्छायाः-षोडश राजसहस्राणि सर्वबलेन तु शृंखलानिबद्धम् ।आकर्षन्ति वासुदेवमवटतटे स्थितं सन्तम् ॥गृहीत्वा शृंखलां स वामहस्तेन आकर्षताम् ।भुञ्जीत विलिम्पेत वा मधुमथनं ते न शक्नुवन्ति / द्वौ 1 षोडशकौ द्वात्रिंशत् सर्वबलेन तु शृंखलानिबद्धम् ।आकर्षन्ति चक्रवर्तिनम् अवटतटे स्थितं सन्तम् // गृहीत्वा " व श्रृंखलां स वामहस्तेन आकर्षताम् / भुञ्जीत विलिम्पेत वा चक्रधरं ते न शक्नुवन्ति // यत् केशवस्य बलं तद् द्विगुणं " भवति चक्रवर्तिनः। ततो इलाः बलवन्तः, अपरिमितबला जिनवरेन्द्राः // ] (वृत्ति-हिन्दी-) प्रस्तुत प्रकरण में, वासुदेवत्व, चक्रवर्तित्व व तीर्थंकरत्व-इन ऋद्धियों - G का निर्देश-प्रतिपादन किया गया है, उनके अतिशय को बताने के लिए नियुक्तिकार द्वारा पांच गाथाएं कही गई हैं ___(71-75) (नियुक्ति-हिन्दी-) किसी कुंए की मेड़ पर अवस्थित वासुदेव को सांकल से बांध , कर सोलह सहस राजा (मिलकर) समस्त बल के साथ खींचते हैं (तो भी वह अविचलित ही " रहता है)|71॥ 888888888888@@@@@ 333333333333333333333333333333333333333333333 88888888888&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&& 283