________________ | aaaaaaa श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 0000000 (वृत्ति-हिन्दी-) शेष विशेष ऋद्धियों (लब्धियों) के स्वरूप का प्रतिपादन करने हेतु & कह रहे हैं 333333333333333333333333333333333333333333333 (69-70) (नियुक्ति-हिन्दी-) (1) आमर्ष औषधि (2) विगुड् औषधि, (3) श्रेष्म औषधि, (4) " जल्ल औषधि (5) संभिन्नस्रोत (संभिन्नश्रोतृ) (6) ऋजुमति (7) सर्वौषधि (8) चारण (लब्धि), " * (9) आशीविष (10) केवली(त्व) (11) मनःपर्यवज्ञान (12) पूर्वधर(त्व), (13) तीर्थंकर(त्व), . a (14) चक्रवर्ती(त्व) (15) बलदेव(त्व) (16) वासुदेव(त्व), (-ये शेष ऋद्धियां हैं)। (हरिभद्रीय वृत्तिः) (प्रथमगाथाव्याख्या-) आमर्शनमामर्शः संस्पर्शनमित्यर्थः, स एवौषधिर्यस्यासावामशैषधिः-साधुरेव संस्पर्शनमात्रादेव व्याध्यपनयनसमर्थ इत्यर्थः।लब्धिलब्धिमतोरभेदात् " a स एवामर्शलब्धिरिति।एवं विट्खेलजल्लेष्वपि योजना कर्तव्येति।तत्र 'विड्' उच्चारः, 'खेलः', श्लेष्मा, 'जल्लो' मल इति, भावार्थः पूर्ववत्, सुगन्धाश्चैते भवन्ति।तथा यः सर्वतः शृणोति स: संभिन्नश्रोता, अथवा सोतांसि इन्द्रियाणि संभिन्नान्येकैकशः सर्वविषयैरस्य परस्परतो वेति / संभिन्नसोताः, संभिन्नान् वा परस्परतो लक्षणतोऽभिधानतश्च सुबहूनपि शब्दान् शृणोति , संभिन्नश्रोता, एवं संभिन्नश्रोतृत्वमपि लब्धिरेव। तथा ऋज्वी मतिः ऋजुमतिः " a सामान्यग्राहिकेत्यर्थः, मनःपर्यायज्ञानविशेषः, अयमपि च लब्धिविशेष एव, , a लब्धिलब्धिमतोश्चाभेदात् ऋजुमतिः साधुरेवा तथा सर्व एव विण्मूत्रकेशनखादयो विशेषाः " खल्वौषधयो यस्य, व्याध्युपशमहेतव इत्यर्थः, असौ सर्वौषधिश्च / एवमेते ऋद्धिविशेषा बोद्धव्या , & इति गाथार्थः॥१९॥ (वृत्ति-हिन्दी-) प्रथम (69वीं) गाथा की व्याख्या इस प्रकार है- आमर्शन अर्थात् , संस्पर्शन- यही-'आमर्श' है। वही औषधि है जिस (लब्धिधारी या ऋद्धिधारी) की (उसके , स्वामित्व में होती है), वह आमभॊषधि (ऋद्धि या लब्धि) है, अर्थात् अपने स्पर्श मात्र से ही, . 4 (स्वयं) साधु ही, व्याधि को दूर करने में सक्षम होता है। लब्धि व लब्धिधारी -इनमें अभेद, a मानकर कहा गया- वही आमर्श-लब्धि है। (अर्थात् वस्तुतः ‘आमर्ष' यह नाम लब्धिधारी का , ही है, किन्तु यहां लब्धि को ही आमर्ष कह दिया गया है।) इसी प्रकार विगुडौषधि, श्लेष्म " (खेल) औषधि व मल (जल्ल) औषधि में भी योजना कर लेनी चाहिए (अर्थात् वहां भी लब्धि / - 274 008@@ceneca@ RO0008ca@20. 9