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________________ -ececacaenance 000000000 -222233333333333333333333222222222382322233333 नियुक्ति-गाथा-69-70 विशेषार्थ मतिज्ञान की प्राप्ति की योग्यता जिन जीवों में बताई गई है, वे ही जीव अवधिज्ञानियों में भी . ग्राह्य हैं। उनके अतिरिक्त भी जिनमें अवधिज्ञान की प्राप्ति की योग्यता है, वे ये हैं- 'वेद' (मोहनीय) 1 & से अतीत, कषाय-अतीत और मनःपर्यायज्ञानी। इन्हें ‘मतिज्ञान के पूर्वप्रतिपन्न' रूप में ही कहा गया , था, किन्तु ये अवधिज्ञान के प्रतिपत्ता भी होते हैं, क्योंकि उपशम श्रेणी हो या क्षपक श्रेणी हो, कुछ अवेदक व अकषाय जीवों को अवधिज्ञान उत्पन्न हो जाता है। इसके अलावा, ऐसे भी कुछ जीव होते हैं जिन्हें अवधिज्ञान तो उत्पन्न नहीं हुआ, जैसे मति-श्रुत ज्ञानी चारित्रयुक्त जीवों को पहले ही मनः / व पर्याय ज्ञान उत्पन्न हो गया, ऐसे कुछ मनःपर्ययज्ञानी भी बाद में अवधिज्ञान को प्राप्त करने वाले होते है ल हैं। इसके अतिरिक्त, अनाहारक व अपर्याप्तकों को मतिज्ञान के 'पूर्वप्रतिपन्न' ही कहा गया है, . * प्रतिपद्यमान नहीं कहा गया, किन्तु यहां जिनका सम्यक्त्व च्युत नहीं होता ऐसे तिर्यश्च व मनुष्यों से , : देव व नारकों में उत्पन्न होने वाले कुछ जीव अवधि के 'प्रतिपद्यमान' रूप में भी प्राप्त होते हैं। जिन्हें मतिज्ञान के पूर्वप्रतिपन्न कहा गया है, उन्हें ही अवधिज्ञान के भी पूर्वप्रतिपन्न समझें, किन्तु यहां अपवाद यह है कि उनमें विकलेन्द्रिय व असंज्ञी पञ्चेन्द्रियों को सम्मिलित नहीं किया जाय। , विकलेन्द्रिय व असंज्ञीपञ्चेन्द्रिय जीव सास्वादन सम्यग्दृष्टि हों तो मतिज्ञान के पूर्वप्रतिपन्न कहे गये हैं, किन्तु अवधि में ये न तो पूर्वप्रतिपन्न हैं और न ही प्रतिपद्यमान- यह तात्पर्य है। (हरिभद्रीय वृत्तिः) तत्र शेषद्धिविशेषस्वरूपप्रतिपादनायाह नियुक्ति) आमोसहि विप्पोसहि खेलोसहि जल्लमोसही चेव। संभिन्नसोउज्जुमइ, सवोसहि चेव बोद्धब्बो // 19 // चारणआसीविस केवली यमणनाणिणोय पुवघरा। अरहंत चक्कवट्टी, बलदेवा वासुदेवा य 70 // [संस्कृतच्छायाः-आमभॊषधिः, विगुडौषधिः, श्लेष्मौषधिः, मलौषधिः वैवासंमिनोता (सोताः) , & ऋजुमतिः सर्वोषधिश्चैव बोद्धव्यः ॥चारणा आशीविषा केवलिनः मनोज्ञानिनश्च पूर्वधराः।अर्हत् वळ्यर्तिनः, बलदेवाः / * वासुदेवाच॥] (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)2008c008 273
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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