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________________ 222333333333333333333333333333333333323232332 / caca ca cace cace caca नियुक्ति गाथा-62-63 0mn ORDon ___ उपर्युक्त अवधिज्ञान के स्वरूप जो बताए गए हैं, उनके पीछे स्पर्द्धकों (निर्गमन-द्वारों) की ca भूमिका रहती है। इसी दृष्टि से सम्भवतः स्पर्द्धकों के भी विविध भेद यहां अवधारित किये गये प्रतीत ल होते हैं। स्पर्द्धकों के आनुगामी, अनानुगामी व मिश्र -ये तीन भेद मुख्य हैं। इनमें प्रत्येक के तीन& तीन भेद हैं-प्रतिपाती, अप्रतिपाती, व मिश्र / इन नौ भेदों के भी तीन-तीन भेद हैं- तीव्र, मंद, मध्य। . स्पर्द्धकों की तीव्रता-मंदता उनके विशुद्ध-संक्लेश पर निर्भर होती है। विशुद्धि हो तो तीव्र, संक्लेश हो / है तो मंद / विशुद्धि व संक्लेश की इतनी विविधता प्रायः मनुष्य व तिर्यञ्चों में ही होती है। आनुगामुक व अप्रतिपाती -इन दोनों में क्या अन्तर है? इस प्रश्न के उत्तर में बताया गया . ca है कि जो नियत व अप्रतिपाती अवधिज्ञान है, वह चलती हुई दीप-शिखा की तरह नियमतः अन्यत्र 1 जा रहे जीव का अनुगमन करता ही है। जो अनुगामी है, वह अक्षीण आंख की तरह अप्रतिपाती है, और क्षीणशक्ति आंख की तरह प्रतिपाती भी हो सकता है। इसी तरह अनानुगामुक व प्रतिपाती-इन ca दोनों में क्या अन्तर है? इस प्रश्न के उत्तर में कहा गया कि प्रतिपाती च्युत होता ही है, च्युत होकर भी . कभी अन्य देश में उत्पन्न भी हो सकता है- किन्तु ऐसा स्वरूप अनानुगामुक का नहीं होता। क्योंकि a वह अनानुगामुक तो अपने उत्पत्ति स्थान में ही कभी च्युत हो जाता है, या कभी नहीं भी होता, और ca च्युत होकर देशान्तर से पुनः उत्पत्तिस्थान में आए जीव के पुनः हो भी सकता है। C (हरिभद्रीय वृत्तिः) व्याख्यातं तीव्रमन्दद्वारम्। इदानीं प्रतिपातोत्पादद्वारं विवृण्वन् गाथाद्वयमाह नियुक्तिः) बाहिरलंभे भज्जो, दव्वे खित्ते य कालभावे य। उप्पा पडिवाओऽविय, तं उभयं एगसमएणं // 2 // अब्धितरलद्धीए, उ तदुभयं बत्थि एगसमएणं। उप्पा पडिवाओऽवि य, एगयरो एगसमएणं // 3 // [संस्कृतच्छायाः-बाह्यलाभे भाज्यो द्रव्ये क्षेत्रे च कालभावयोश्च ।उत्पाद-प्रतिपातौ अपि च तदुभयं C चैकसमयेन ॥आभ्यन्तरलब्धौ तदुभयं नास्ति एकसमयेन ।उत्पादः प्रतिपातोऽपि च एकतर एकसमयेन।] (वृत्ति-हिन्दी-) तीव्र मंद द्वार का कथन पूर्ण हुआ। अब प्रतिपात-उत्पाद द्वार का . & व्याख्यान करने हेतु (आगे) दो गाथाएं कह रहे हैं @ @ @ @ @ @ @ @ @ @ @ @ @ 257
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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