________________ -Racecaca cace श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 0000000 | (हरिभद्रीय वृत्तिः) उक्तं संस्थानद्वारम् ।साम्प्रतमानुगामुकद्वारार्थप्रचिकटयिषयेदमाह __ नियुक्तिः) अणुगामिओ उ ओही, नेरइयाणं तहेव देवाणं। अणुगामी अणणुगामी, मीसोय मणुस्सतेरिच्छे॥१६॥ [संस्कृतच्छायाः-अनुगामुकस्तु अवधिः नैरयिकाणां तथैव देवानाम् / अनुगामी अनबुगामी मिश्रश्व मनुष्य-तिर्यक्षु // (वृत्ति-हिन्दी-) संस्थान द्वार का कथन हो गया। अब आनुगामुक द्वार सम्बन्धी & अर्थ को प्रकट करने हेतु यह गाथा कह रहे हैं (56) 33333333333333-8--23333333333333333333333333333 (नियुक्ति-अर्थ-) नारकी और देवों का अवधिज्ञान आनुगामिक होता है। (किन्तु) , मनुष्य व तिर्यञ्चों का अवधिज्ञान आनुगामिक, अनागामिक व मिश्र भी होता है। (हरिभद्रीय वृत्तिः) (व्याख्या-) अनुगमनशील आनुगामुकः, लोचनवद् / तुशब्दस्त्वेवकारार्थः, स चावधारणे, आनुगामुक एव अवधिः। केषामित्यत आह- नरान् कायन्तीति नरकाःनारकाश्रयाः, तेषु भवा नारका इति, तेषां नारकाणाम् / तथैव' आनुगामुक एव, दीव्यन्तीति देवास्तेषामिति।तथा आनुगामुकः, अननुगमनशीलोऽननुगामुकः स्थितप्रदीपवत् ।तथा एकदेशानुगमनशीलो मिश्रः, देशान्तरगतपुथ्षैकलोचनोपघातवत्।चशब्दः समुच्चयायः, मित्रश्च, मनुष्याश्च तिर्यश्चश्च मनुष्यतिर्यश्चस्तेषु मनुष्यतिर्यक्षु योऽवधिः स एवंविधस्त्रिविध इति / & गाथार्थः // 16 // (वृत्ति-हिन्दी-) (व्याख्या-) जो (अपनी) आंख की तरह (ज्ञानी के) साथ-साथ अनुगमन करे, वह आनुगामुक अवधिज्ञान होता है। ‘तु' (तो) शब्द 'ही' अर्थ को व्यक्त / & करता है, वह इस तरह ‘अवधारण' करता है- आनुगामुक ही अवधिज्ञान होता है, किनके? " & उत्तर दिया- नारकियों के / नरों को (सहायतार्थ) पुकारते हैं, वे नरक यानी नरक-भूमियां, 7 " उनमें होने वाले (जीव) हैं- नारकी, उनका (अवधिज्ञान आनुगामुक ही होता है)। उसी - 244 @@@@@@9889@cr@9898cr(r)(r)