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________________ - Recenect निर्यक्ति-गाथा-55. 000000002 22333333333333-2332333333333333333333333333333 पटह, झल्लरी व मृदंग -ये वाद्यविशेष हैं। इनमें 'झल्लरी' का निरूपण 'द्रव्यनन्दी' के रूप ca में, नियुक्ति-गाथा -1 की भूमिका में किया जा चुका है। पटह व मृदंग के स्वरूप इस प्रकार होते हैं- " & मृदंग- यह दो मुखवाला अनवद्ध वाद्य है। यह लगभग साठ सेंटीमीटर लंबा होता है। यह " & बीच से फूला होता है, इसका दायां मुख बाएं मुख की अपेक्षा कुछ छोटा होता है। बायां मुख, जिसे - टोपी कहा जाता है, दो पर्तों वाला और अपेक्षाकृत कम जटिल होता है। बाहरी पर्त चमड़े का एक छल्ला होती है और इसके किनारे एक छल्ले से जुड़े होते हैं जिन्हें पिन्नल कहा जाता है। इस पर्व में , अन्दर की ओर एक गोल झिल्ली होती है जो बाहरी पर्त के अनुपात में होती है। यह पूरी रचना बायें ce मुख पर लगी होती है। दाएं मुख में तीन पर्ते होती हैं। दो पर्तों के मध्य में तीसरी पर्त खींच कर लगायी जाती है और दोनों पर्तों के किनारों से चिपका दी जाती है। यह जटिल संरचना जिसे तमिल . में वालन तलई कहते हैं, दाएं मुख पर मढ़ दी जाती है। बायीं ओर का मुख टोपी और दायीं ओर का , वालन चमड़े की डोरियों से कस कर बांध दिए जाते हैं, जो पिन्नल अथवा छेदों से निकलते और अंदर , आते हैं। दाएं मुख पर काले रंग का मिश्रण स्थायी तौर पर चिपका दिया जाता है। दूसरी ओर टोपी / ce एक सादा चमड़ा होता है, जिस पर वादन से पहले तुरन्त आटे की लोई मध्य भाग में लगा दी जाती है ल है, जिसे वादन के उपरान्त हटा दिया जाता है। लकड़ी के टुकड़े और पत्थर से दाएं पिन्नल को ठोक " & बजाकर वाद्य को मिलाया जाता है। & पटह- इसे 'ढोलक' नाम से भी जाना जाता है। पटह दो प्रकार का होता है- देशी तथा & मार्गी / मार्गी पटह की लम्बाई डेढ़ हाथ से ढाई हाथ तक की होती है तथा बीच का भाग कुछ उठा . & हुआ होता है। इसके दाहिने मुख का व्यास साढ़े ग्यारह अंगुल तथा वाम मुख साढ़े दस अंगुल का , होता है। कांठ भीतर से खोखला होता है तथा उसके दोनों मुख गोल होते हैं। दाहिने तथा बाएं मुख, पर लोहे अथवा काठ की हंसुली पहना कर उन्हें चमड़े से लपेट दिया जाता है। दाहिने मुख पर पतला चमड़ा तथा वाम मुख पर मोटा चमड़ा मढ़ा जाता है। इन हंसुलियों में सात-सात छेद कर रेशम की ca डोरी पिरो दी जाती है, जिसमें सोना, पीतल अथवा लोहे के छल्ले डाल दिये जाते हैं, जिन्हें " a आवश्यकतानुसार खींच कर स्वर मिला लिया जाता है। देशी पटह- इसकी लम्बाई डेढ़ हाथ की . होती है तथा इसका दक्षिण और वाम मुख क्रमशः सात तथा साढ़े छह अंगुल व्यास के होते हैं। शेष, बातें मार्गी पटह की भांति ही होती है। पटह के लिए खैर की लकड़ी सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। देशी पटह के आकार में सामान्य अंतर भी हो सकता है। प्रायः सभी मांगलिक अवसरों पर इसका वादन किया to छ / जाता है। (r) (r)ce@ @ @ @ @ @ @200@ce@ @ 243 -
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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