________________ 00BROR@RB0BROBCR8888880880@ce प्रस्तावना आवश्यक-नियुक्ति ग्रन्थ और उसके टीकाकार a222222222222222222222222222222233222222222222 प्रो. डॉ. दामोदर शास्त्री विशिष्ट जैन आगम 'आवश्यक सूत्र' पर अ. भद्रबाहु द्वारा रचित (प्राकृतपद्यात्मक) 1 / व्याख्यात्मक ग्रन्थ के रूप में 'आवश्यक नियुक्ति' का जैन परम्परा में महनीय स्थान है। इस पर म आचार्य हरिभद्र ने संस्कृत में 'वृत्ति' लिखी है। प्रस्तुत प्रकाशन में आवश्यक नियुक्ति व हरिभद्रीय वृत्ति- दोनों (के मूल के साथ, उन) का हिन्दी अनुवाद भी दिया जा रहा है। सामान्य पाठकों के हितार्थ ल आवश्यक सूत्र, नियुक्ति व वृत्ति -इन तीनों का संक्षिप्त परिचय यहां प्रस्तुत किया जा रहा है जैन श्वेताम्बर स्थानकवासी परम्परा में बत्तीस आगम प्रमाण रूप से मान्यता प्राप्त हैं- 11 अंग, 24 12 उपांग, 4 मूल सूत्र, 4 छेदसूत्र, और आवश्यक सूत्र / आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानाङ्ग, समवायाङ्ग, ca भगवती (व्याख्याप्रज्ञप्ति), ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तकृद्दशा, अनुत्तरोपपातिक दशा, & प्रश्नव्याकरण, विपाक –ये ग्यारह अंग सूत्र हैं (बारहवें अंग दृष्टिवाद के लुप्त हो जाने से, उपलब्ध अंगों की संख्या ग्यारह मानी गई है)। औपपातिक, राजप्रश्नीय, जीवाभिगम, प्रज्ञापना, जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति, निरयावलिका-कल्पिका, कल्पावतंसिका, पुष्पिका, पुष्पचूलिका, वृष्णिदशा : ca -ये बारह उपांग हैं। चार मूल सूत्र हैं- दशवैकालिक, अनुयोगद्वार, उत्तराध्ययन, और नन्दी सूत्र। चार न छेदसूत्र हैं- दशाश्रुत स्कन्ध, व्यवहार सूत्र, बृहत्कल्प सूत्र, और निशीथ सूत्र। उपर्युक्त आगमों की कुल ca संख्या इकतीस है, उसमें आवश्यक सूत्र को जोड़ने से बत्तीस संख्या पूरी हो जाती है। 888888888888888888888888888888888888888888888 आवश्यक सूत्र : स्वरूप-परिचय आवश्यक सूत्र को अंगबाह्य आगमों में अतिविशिष्ट स्थान दिया गया है (द्र. नन्दीसूत्र)। " विशेषावश्यक भाष्य (गा. 550 तथा वृत्ति) के अनुसार गणधरों द्वारा द्वारा न पूछने पर; तीर्थंकर द्वारा 'मुक्तव्याकरण' (उन्मुक्त कथन) रूप से जो निष्पन्न- अभिव्यक्त होता है, अथवा जो स्थविर आचार्यों द्वारा रचित होता है, वह 'अंगबाह्य' आगम होता है। अतः अंगबाह्य रचना के अन्तर्गत वे सभी रचनाएं , * समाविष्ट की गई हैं जो अत्यन्त प्रकृष्ट मति आदि वाले श्रुतकेवली या अन्य विशिष्ट ज्ञानी आचार्यों द्वारा " काल, संहनन, आयु की दृष्टि से अल्प योग्यता वाले शिष्यों पर अनुग्रह करते हुए लिखी गई हैं। / -00800ROSCR98R(r)(r)(r)(r)(r)(r)ce /