________________ 222333333333333333333322222222222222233333333 -ca cace ca ca cace श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 2 ORDon| (हरिभद्रीय वृत्तिः) आह-परमाणुद्वयणुकादि द्रव्यमनुक्तं कथं गम्यते तदालम्बनत्वेनेति, ततश्चोपात्तमेव . कार्मणमिदं भविष्यति, न।तस्यैकप्रदेशावगाहित्वानुपपत्तेः। लभते चागुरुलघु' ।चशब्दात् , गुरुलघु।जात्यपेक्षं चैकवचनम्, अन्यथा हि सर्वाणि सर्वप्रदेशावगाढानि द्रव्याणि पश्यतीत्युक्तं . भवति। तथा तैजसशरीरद्रव्यविषये अवधौ कालतो भवपृथक्त्वं परिच्छेद्यतयाऽवगन्तव्यमिति। एतदुक्तं भवति-यस्तैजसशरीरं पश्यति, स कालतो भवपृथक्त्वं पश्यति इति।इह च य एव: हि प्राक् तैजसं पश्यतः असंख्येयः काल उक्तः, स एव भवपृथक्त्वेन विशेष्यत इति। (वृत्ति-हिन्दी-) (शंका-) 'एकप्रदेशावगाढ़' से परमाणु आदि का अर्थ आपने कैसे ... * लिया? परमाणु आदि का कथन तो गाथा में है नहीं, अतः इसी पद के आगे आए कार्मण, & शरीर का ही विशेषण ‘एकप्रदेशावगाढ़' को मान लें। (उत्तर-) ऐसा उचित नहीं है। कार्मण " c. शरीर की एक प्रदेश में स्थिति संगत नहीं होती। (वह असंख्येयप्रदेशी होता है, अतः कार्मण " & शरीर का एकप्रदेशावगाढ़ विशेषण नहीं हो सकता)। अगुरुलघु द्रव्य को भी वह देखता है। " 'च' पद से यह सूचित होता है कि गुरुलघु द्रव्य को भी वह देखता है। ‘अगुरुलघु' में : एकवचन जातिवाचक है। अर्थात् पुद्गलजातीय ही यहां ग्राह्य है, अन्यथा यह अर्थ निकल 4 जाता कि सर्व-प्रदेशावगाढ़ सभी द्रव्यों को (अर्थात् धर्मास्तिकाय आदि को भी) देखता- 1 जानता है। और जब तैजस शरीर को अवधिज्ञान देखता है तो काल की दृष्टि से भवपृथक्त्व (दो / & से नौ भवों तक के समय) को अवधि के ज्ञेय रूप में जानना चाहिए। तात्पर्य यह है- जो & अवधिज्ञान तैजस शरीर को देखता है, वह काल की दृष्टि से भवपृथक्त्व को देखता है। तैजस , << शरीर को देखने वाले अवधिज्ञान का जो पहले असंख्येय (पल्योपम का असंख्येय) काल कहा गया था, उसे ही यहां 'भवपृथक्त्व' रूपी विशेषण से युक्त कहा गया है (अर्थात् , & पल्योपम का असंख्यात काल यानी भवपृथक्त्व, 2 भवों से लेकर नौ भवों तक)। a (हरिभद्रीय वृत्तिः) आह-नन्वेकप्रदेशावगाढस्यातिसूक्ष्मत्वात् तस्य च परिच्छेद्यतयाऽभिहितत्वात् कार्मणशरीरादीनामपि दर्शनं गम्यत एवेत्यतः तदुपन्यासवैयर्थ्यम्।तथैकप्रदेशावगाढमित्यपि - 2200(r)c(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)ca@28