________________ Imacecacaaca श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अबुवाद सहित) 2200000 उक्त अचित्त महास्कन्ध जैसा कोई अन्य या इससे बड़ा कोई स्कन्ध नहीं है, यही सबसे बड़ा a (उत्कृष्टप्रदेशी) है- ऐसी मान्यता समीचीन नहीं है। इसके लिए प्रज्ञापना (पांचवां पद, सू. 554) में , 60 उत्कृष्टप्रदेशी स्कन्ध का जो निरूपण प्राप्त है, वह उतनीय है। वहां कहा गया है कि उत्कृष्टप्रदेशी स्कन्ध अन्य उत्कृष्टप्रदेशी स्कन्ध से द्रव्य व प्रदेश दृष्टि से समान होता है, अवगाहना व स्थिति की दृष्टि , से 'चतुःस्थानपतित' है, अर्थात् उनमें परस्पर हीनता होगी या अधिकता होगी, यह हीनाधिकता चार " रूपों में सम्भव है (1) असंख्यातभाग हीन या असंख्यातभाग अधिक। (2) संख्यातभाग हीन या संख्यातभाग अधिक। (3) असंख्यातगुण हीन या असंख्यातगुण अधिक। (4) संख्यातगुण हीन या संख्यातगुण अधिक। इसी प्रकार, वर्ण, गन्ध, रस एवं आठ स्पर्शी सम्बन्धी पर्यायों की अपेक्षा से वह षट्स्थानपतित' a है, अर्थात् वह हीनाधिकता छः रूपों में सम्भव है (1) अनन्तभाग हीन या अनन्तभाग अधिक। (2) असंख्यातभाग हीन या असंख्यातभाग अधिक। (3) संख्यातभाग हीन या संख्यातभाग अधिक। (4) अनन्तगुण हीन या अनन्तगुण अधिक। (5) असंख्यातगुण हीन या असंख्यातगुण अधिक। (6) संख्यातगुण हीन या संख्यातगुण अधिक। प्रज्ञापना के उक्त निरूपण को दृष्टि में रखें तो यह स्पष्ट होता है कि जिस उत्कृष्टप्रदेशी , 4 महास्कन्ध का निरूपण है, उससे अन्य भी, उस जैसे महास्कन्ध हैं, क्योंकि तभी परस्पर तुल्यता , : बताना सम्भव होगा। दूसरी बात, प्रज्ञापना-निरूपित अचित्त महास्कन्ध आठ स्पर्शों वाला है, जबकि प्रकृत गाथा में वर्गणा-प्रसंग से जो अचित्त स्कन्ध बताया गया है, वह तो चार स्पर्शों वाला ही है। " इससे भी स्पष्ट है कि चार स्पर्शों वाले महास्कन्ध से पृथक् भी अन्य अनेक स्कन्धों का सद्भाव है। " (हरिभद्रीय वृत्तिः) प्राक् तेजसभाषाद्रव्याणामन्तराले गुरुलध्वगुरुलघु च जघन्यावधिप्रमेयं द्रव्यम्' : इत्युक्तम्, बौदारिकादिद्रव्याणि।साम्प्रतमौदारिकादीनां द्रव्याणां यानि गुरुलघूनि यानि " चागुरुलघूनि, तानि दर्शयन्नाह- 212 @pconcenceenece@2008c008