________________ -222222222222222222222222222222222222222222322 cacancacacara श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 000 0000(हरिभद्रीय वृत्तिः) आह-अचित्तत्वाव्यभिचारात्तस्याचित्तविशेषणानर्यक्यमिति, न, केवलिसमुद्घातa सचित्तकर्म-पुद्गललोकव्यापिमहास्कन्धव्यवच्छेदपरत्वात् विशेषणस्येति। . अयमेव सर्वोत्कृष्ट प्रदेश इति केचिद् व्याचक्षते, न चैतदुपपत्तिक्षमम् , : यस्मादुत्कृष्टप्रदेशोऽवगाहनास्थितिभ्याम् असंख्येयभागहीनादिभेदाद् चतुःस्थानपतित उक्तः। . तथा चोक्तम्- “उक्कोसपएसिआणं भंते! केवइआ पज्जवा पण्णता?, गोयमा! अणन्ता,से केणतुणं भंते! एवं वुच्चइ?, गोयमा! उक्कोसपएसिए उक्कोसपएसिअस्स दवट्ठयाए तुल्ले, पएसट्टयाए वितुल्ले, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए, ठितीए वि 4, वण्णरसगन्ध अट्ठहि अ. फासेहि छठ्ठाणवडिए"।[उत्कृष्टप्रदेशिकानां भदन्त! कियन्तः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः? गौतम! अनन्ताः, * तत्केनार्थेन भदन्त! एवमुच्यते? गौतम! उत्कृष्टप्रदेशिक उत्कृष्टप्रदेशिकस्य द्रव्यार्थतया तुल्यः अवगाहनया चतुःस्थानपतितः स्थित्याऽपि, वर्णरसगन्धैरष्टभिः स्पर्शेश्च षट्स्थानपतितः।] अयं , पुनस्तुल्य एव, अष्टस्पर्शश्वासौ पठ्यते, चतुःस्पर्शश्च अयमिति। अतोऽन्येऽपि सन्तीति प्रतिपत्तव्यम्, इत्यलं प्रसझेनेति गाथार्थः // __ (वृत्ति-हिन्दी-) (शंका-) उक्त महास्कन्ध (पौद्गलिक ही तो है अतः) अचित्त ही , होता है (वह कभी) सचित्त तो होता नहीं, इसलिए उसका 'अचित्त' यह विशेषण अनर्थक है। (उत्तर-) वह विशेषण निरर्थक नहीं है, क्योंकि केवलिसमुद्घात के समय लोक में व्याप्त होने वाले सचित्त महास्कन्ध का ग्रहण यहां न हो -इस दृष्टि से यह विशेषण सार्थक है। : कुछ लोगों की व्याख्या के अनुसार, यह 'अचित्त महास्कन्ध' ही सर्वोत्कृष्ट प्रदेशों / वाला है, किन्तु उनका यह मत युक्तियुक्त नहीं है, क्योंकि उत्कृष्टप्रदेशी महास्कन्ध को, 1 उसकी अवगाहना व स्थिति की दृष्टि से उनमें होने वाली असंख्यात भाग हीनता (या " a अधिकता) आदि भेदों के कारण चतुःस्थानपतित कहा गया है। (प्रज्ञापना सूत्र के पांचवें पर्याय ca पद व सू. 554 में) कहा भी गया है- भगवन्! उत्कृष्टप्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गये . हैं? (उत्तर-) गौतम! उत्कृष्टप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय होते हैं। (प्रश्न-) किस अपेक्षा , से आप ऐसा कहते हैं? (उत्तर-) गौतम! उत्कृष्टप्रदेशी स्कन्ध दूसरे उत्कृष्टप्रदेशी स्कन्ध से , द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से भी तुल्य है, अवगाहना की अपेक्षा से , / चतुःस्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा से भी चतुःस्थानपतित है, किन्तु वर्णादि तथा आठ 210 (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)CRO9002@cr@200. .