________________ -RRRRRRRece 2299999000 333333333333333333333333333333333333333333333 नियुक्ति गाथा-32-35 / संख्यात भाग को देखता हुआ आवलिका के मात्र संख्यात भाग को देखता है- यह अर्थ है ca और क्षेत्र की दृष्टि से (सम्पूर्ण) अंगुल को देखता हुआ अवधिज्ञानी अन्तःआवलिका को, . & अर्थात् भिन्न या अपूर्ण आवलिका को देखता है। और काल की दृष्टि से आवलिका को देखता : हुआ, क्षेत्र की अपेक्षा से अंगुल-पृथक्त्व को देखता है। यहां पृथक्त्व से तात्पर्य है- दो से नौ : c तक की संख्या / यह प्रथम गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ ||32 / / (हरिभद्रीय वृत्तिः) द्वितीयगाथाव्याख्या- 'हस्ते' इति हस्तविषयः क्षेत्रतोऽवधिःकालतो मुहूर्तान्तः पश्यति, , भिन्न मुहूर्त्तमित्यर्थः। अवध्यवधिमतोरभेदोपचाराद् अवधिः पश्यतीत्युच्यते।तथा कालतो. दिवसान्तः' भिन्नं दिवसं पश्यन, क्षेत्रतो गव्यूतम् इतिगव्यूतविषयो बोद्धव्यः, तथा योजनविषयः / क्षेत्रतोऽवधिःकालतो दिवसपृथक्त्वं पश्यति, तथा, 'पक्षान्तः भिन्न पक्षं पश्यन् कालतः क्षेत्रतः // & पञ्चविंशतियोजनानि पश्यतीति द्वितीयगाथार्थः // 33 // 4 (वृत्ति-हिन्दी-) दूसरी गाथा की व्याख्या इस प्रकार है- 'हाथ में' इसका तात्पर्य ब है- (अवधि) क्षेत्र की दृष्टि से (एक) हाथ पर्यन्त (देखता है, तो वह) काल की दृष्टि से . 'अन्तर्मुहूर्त' यानी भिन्न (अपूर्ण) मुहूर्त काल को देखता है। अवधि व अवधिज्ञानी -इन दोनों से 4 में अभेद उपचार कर 'अवधि देखता है' -ऐसा कहा गया है। (वास्तव में उसका तात्पर्य है - अवधिज्ञानी देखता है)। और काल की दृष्टि से 'अन्तर्दिवस' यानी भिन्न (अपूर्ण) दिवस को , देखता हुआ (अवधिज्ञानी) क्षेत्र की दृष्टि से 'गव्यूत' (एक चौथाई योजन) को (ज्ञान का) : C विषय करता है- ऐसा समझें। और क्षेत्र की दृष्टि से योजन को विषय करने वाला 'अवधि' / c ज्ञान काल की दृष्टि से दिवस-पृथक्त्व को देखता है, और काल की दृष्टि से 'अन्तःपक्ष' यानी // * भिन्न (अपूर्ण) पक्ष (पखवाड़े) को देखता हुआ क्षेत्र की दृष्टि से पच्चीस योजन पर्यन्त देखता " है- यह द्वितीय गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 33 // (हरिभद्रीय वृत्तिः) तृतीयगाथा व्याख्यायते- 'भरते' इति भरतक्षेत्रविषये अवधौ कालतोऽर्धमास उक्तः। c एवं जम्बूद्वीपविषये चावधौ साधिको मासः, वर्ष च मनुष्यलोकविषयेऽवधौ इति।मनुष्यलोकः / व खल्वर्धतृतीयद्वीपसमुद्रपरिमाणः, वर्षपृथक्त्वं च चकाख्यबाहाद्वीपविषयेऽवधाववगन्तव्यमिति - तृतीयगाथार्थः॥३४॥ - @986@ @@@ @ @ @ @ @ @ce(r)(r) 193