________________ Reacecra श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 9000000 - (हरिभद्रीय वृत्तिः) ___प्रथमगाथाव्याख्या- 'अङ्गुलम्' क्षेत्राधिकारात् प्रमाणाङ्गुलं गृह्यते, अवध्यधिकाराच्च . उच्छ्रयाङ्गुलमित्येके / 'आवलिका' असंख्येयसमयसंघातोपलक्षितः कालः। उक्तं च "असंखिज्जाणं समयाणं समुदयसमितिसमागमेणं सा एगा आवलियत्ति वुच्चति" अङ्गलं व चावलिका च अङ्गुलावलिकेतयोरङ्गुलावलिकयोः। भागम्' अंशम् असंख्येयं पश्यति अवधिज्ञानी।। एतदुक्तं भवति-क्षेत्रमङ्गुलासंख्येयभागमात्रं पश्यन् कालतः आवलिकाया असंख्येयमेव / < भागं पश्यत्यतीतमनागतं चेति।क्षेत्रकालदर्शनं चोपचारेणोच्यते, अन्यथा हि क्षेत्रव्यवस्थितानि , दर्शनयोग्यानि द्रव्याणि, तत्पर्यायांश्च विवक्षितकालान्तरवर्त्तिनः पश्यति, न तु क्षेत्रकालौ, , मूर्त्तद्रव्यालम्बनत्वात्तस्येति।एवं सर्वत्र भावना द्रष्टव्या।क्रिया च गाथाचतुष्टयेऽप्यध्याहार्या।। तथा 'द्वयोः' अङ्गुलावलिकयोः संख्येयौ भागौ पश्यति, अङ्गुलसंख्येयभागमात्रं क्षेत्रं : पश्यन्नावलिकायाः संख्येयमेव भागं पश्यतीत्यर्थः।तथा अङ्गुलं पश्यन् क्षेत्रतः आवलिकान्तः पश्यति, भिन्नामावलिकामित्यर्थः।तथा कालतः आवलिकां पश्यन् क्षेत्रतोऽङ्गुलपृथक्त्वं पश्यति। पृथक्वं हि द्विप्रभृतिरा नवभ्यः इति प्रथमगाथार्थः // 32 // (वृत्ति-हिन्दी-) प्रथम गाथा का व्याख्यान इस प्रकार है- अङ्गुल पद से यहां " & 'प्रमाणांगुल' लेना चाहिए, क्योंकि यहां क्षेत्र का अधिकार (प्रसंग) चल रहा है। कुछ लोग " यहां अंगुल पद से उच्छ्रयांगुल ग्रहण करते हैं, क्योंकि यहां अवधि ज्ञान का अधिकार (प्रकरण) है। असंख्यात समयों के समूह रूप में अभिव्यक्त काल को 'आवलिका' कहते हैं। , कहा भी है- "असंख्यात समयों के समूह को मिला कर एक 'आवलिका' कही जाती है"।" अंगुली व आवलिका -इन दोनों के असंख्यात भाग यानी अंश को अवधिज्ञानी देखता है। " तात्पर्य यह है कि अंगुल के असंख्यात भाग प्रमाण क्षेत्र को देखता हुआ (अवधिज्ञानी) ca काल की अपेक्षा से आवलिका के (वर्तमान), अतीत, भावी रूपों सहित असंख्येय भाग को, देखता है। यहां क्षेत्र व काल को देखना जो कहा गया है, वह उपचार से ही है क्योंकि वह क्षेत्र . में स्थित दर्शन-योग्य द्रव्यों को और विवक्षित काल के अन्तर्वर्ती पर्यायों को देखता है, न कि क्षेत्र व काल को, क्योंकि अवधिज्ञान का आलम्बन मात्र मूर्तद्रव्य ही होता है। इसी प्रकार , & (अन्यत्र, जहां भी क्षेत्र व काल को देखने की बात हो, वहां) सर्वत्र यही भावना (समझ) : रखनी चाहिए। ('देखता है' -इस) क्रिया का चारों गाथाओं में अध्याहार करना चाहिए। . इसी प्रकार जो अंगुल व आवलिका के संख्येय भागों को देखता है, वह अंगुल के मात्र - 19280@cr(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)0898c000 * 333333333333333333333333333333333333333333333