________________ 2333333333333333333333 222222 -acace ce ca caca श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) Ronawane / (हरिभद्रीय वृत्तिः) (व्याख्या-) सर्वेभ्यो विवक्षितकालावस्थायिभ्योऽनलजीवेभ्य एव बहवः सर्वबहवः, , न भूतभविष्यद्भ्यः, नापि शेषजीवेभ्यः।कुतः?, असंभवात्।अग्नयश्च ते जीवाश्च अग्निजीवाः, . सर्वबहवश्च तेऽग्निजीवाश्च सर्वबहग्निजीवाः। निरन्तरम्' इति क्रियाविशेषणम्। यावत्' / यावत्परिमाणम् ‘भृतवन्तो' व्याप्तवन्तः, 'क्षेत्रम्' आकाशम् / एतदुक्तं भवति-नैरन्तर्येण , विशिष्टसूचीरचनया यावत् भृतवन्त इति।भूतकालनिर्देशश्च अजितस्वामिकाल एव प्रायः / & सर्वबहवोऽनलजीवा भवन्ति अस्यामवसर्पिण्यां इत्यस्यार्थस्य ख्यापनार्थः। इदं . ca चानन्तरोदितविशेषणं क्षेत्रमेकदिक्कमपि भवति, अत आह- 'सर्वदिक्कम्'। अनेन " & सूचीपरिचमणप्रमितमेवाह / परमश्चासाववधिश्च परमावधिः, 'क्षेत्रम्' अनन्तरव्यावर्णितं , प्रभूतानलजीवमितमङ्गीकृत्य निर्दिष्ट क्षेत्रनिर्दिष्टः, प्रतिपादितो गणधरादिभिरिति, ततश्चपर्यायेण , परमावधेरेतावत्क्षेत्रमित्युक्तं भवति।अथवा सर्वबहग्निजीवा निरन्तरं यावद् भृतवन्तः क्षेत्रं : सर्वदिक्कम् / एतावति क्षेत्रे यान्यवस्थितानि द्रव्याणि तत्परिच्छेदसामर्थ्ययुक्तः परमावधिः / cक्षेत्रमङ्गीकृत्य निर्दिष्टो, भावार्थस्तु पूर्ववदेव, अयमक्षरार्थः। (वृत्ति-हिन्दी-) (व्याख्या-) सर्वाधिक यानी विवक्षित समयों में होने वाले सभी / 8 अग्निकायिक जीवों से अधिक। अतीत व भावी अग्नि-कायिक जीवों से अधिक या अन्य , सभी जीवों से अधिक -यह अर्थ यहां करना उचित नहीं, क्योंकि ऐसा होना सम्भव नहीं है। " ca अग्नि जीव यानी जो अग्नि भी है और जीव भी है। सर्वाधिक जो अग्नि जीव हैं, उन्होंने। 'निरन्तर' यह क्रिया-विशेषण है, (अर्थात् निरन्तरता से) जितने क्षेत्र यानी आकाश को भर दिया था, व्याप्त किया था। भूतकाल की क्रिया का निर्देश यह बताने के लिए है कि इस : अवसर्पिणी में सर्वाधिक अग्निकायिक जीवों का सद्भाव श्री अजितनाथ (द्वितीय) तीर्थंकर : 4 के समय हुआ था। निरन्तर भरा गया' इस पूर्वोक्त विशेषण से युक्त क्षेत्र एक दिशा में भी हो . c सकता है, इसलिए कहा- सर्वदिक्क। यहां यह बताया गया है कि सूई की तरह घुमाने से , & जितना क्षेत्र परिधि में आये, उतना क्षेत्र / परमावधि यानी परम (उत्कृष्ट) जो अवधि ज्ञान। " क्षेत्र -सर्वाधिक अग्नि-जीवों द्वारा व्याप्त जिस क्षेत्र का अभी-अभी निरूपण किया गया है, . वही यहां क्षेत्र के रूप में निर्दिष्ट है। इस तरह परमावधि का ज्ञान-पर्याय की दृष्टि से इतना : * क्षेत्र होता है -यह (निष्कर्ष रूप में) निरूपित किया गया है। अथवा सर्वाधिक अग्नि जीवों " I ने निरन्तर सभी दिशाओं से जितने क्षेत्र को भरा था, उतने क्षेत्र में जो जो द्रव्य स्थित है, उन्हें - 186 (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)