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________________ Recaceecececece नियुक्ति-गाथा-29 OOOOOOOON 222222222222222222222222222222222222223232322 (वृत्ति-हिन्दी-) दूसरी (28वीं) गाथा की व्याख्या इस प्रकार है-ज्ञान-दर्शन-विभा c. -इनका कथन करें। अर्थात् यह बताना चाहिए कि यहां ज्ञान कितना है, दर्शन कितना है, . विभङ्ग (अवधि-अज्ञान) कितना है? इनके परस्पर अल्प-बहुत्व का विचार करना चाहिए। अब 'देश' द्वार है, अर्थात् किसके देशावधि और किसके सर्वावधि ज्ञान होता है -यह बताना चाहिए। क्षेत्र' द्वार- क्षेत्रविषय की दृष्टि से अवधि का निरूपण करना चाहिए, अर्थात् : सम्बद्ध, असम्बद्ध, अन्तरालवर्ती -इत्यादि क्षेत्र की अपेक्षा से अवधि का निरूपण करना , ca चाहिए। 'गति' इत्यादि द्वार- यहां इति पद 'आदि' अर्थ का वाचक है, अर्थात् अवधि के गति a आदि द्वारों के जाल (अनेक द्वारों) का कथन करना चाहिए। इसके साथ ही, ऋद्धि प्राप्त का . भी अनुयोग (कथन) करना चाहिए, यहां अनुयोग का अर्थ है- अनुकथन (अनुकूल, . अनुरूप कथन)। इस तरह, इस प्रकार से, ये पूर्वोक्त 'प्रतिपत्तियां' हैं। प्रतिपत्ति यानी, प्रतिपादन, परिच्छेद (विश्लेषणात्मक ज्ञान)। अवधि की उक्त प्रकृतियां (प्रकार, भेद) ही प्रतिपत्ति की हेतु (आधार) हैं, इस दृष्टि से इन्हें ही 'प्रतिपत्ति' कह दिया जाता है। यह दोनों , ca गाथाओं का समुदित अर्थ पूर्ण हुआ // 28 // (हरिभद्रीय वृत्तिः) साम्प्रतमनन्तरोक्तद्वारगाथाद्वयाद्यद्वारव्याचिख्यासयेदमाह (नियुक्तिः) नामं ठवणा दविए, खित्ते काले भवे य भावे य। एसो खलु निक्खेवो ओहिस्सा होइ सत्तविहो R9 // [संस्कृतच्छायाः- नाम स्थापना द्रव्यं क्षेत्रं कालो भवच भावश्च / एष खलु निक्षेपोऽवधेः भवति. सप्तविधः। (वृत्ति-हिन्दी-) अबं, पीछे अवधि-द्वारों से सम्बन्धित दो गाथाएं कही गई हैं, उनमें : कहे गए प्रथम द्वार का व्याख्यान करने की इच्छा से (आगे) यह कथन कर रहे हैं (29) (नियुक्ति-अर्थ-) नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भाव -ये ही अवधि के , सप्त प्रकार के निक्षेप हैं। 89&c.090@c@necreneca@@neces@ 179
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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