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________________ As cecececace cence नियुक्ति-गाथा-21-28 000000000 23223232 2222222222222222222233 32333333 (हरिभद्रीय वृत्तिः) (व्याख्या-) तत्र अवध्यादीनि गतिपर्यन्तानि चतुर्दश द्वाराणि, ऋद्धिस्तु चसमुच्चितत्वात् . & पञ्चदशम् / अन्ये त्वाचार्या अवधिरित्येतत्पदं परित्यज्य आनुगामुकमनानुगामुकसहितम् , & अर्थतोऽभिगृह्य चतुर्दश द्वाराणि व्याचक्षते।यस्मात् नावधिः प्रकृतिः, किंतर्हिः, अवधेरेव प्रकृतयः चिन्त्यन्ते, यतश्च प्रकृतीनामेव चतुर्दशधा निक्षेप उक्त इति।पक्षद्वयेऽपि अविरोध इति। तत्र 'अवधिरिति' |अवधेर्नामादिभेदभिन्नस्य स्वरूपमभिधातव्यम्, तथा अवधिशब्दो द्विरावर्त्यते इति व्याख्यातमिति तथा क्षेत्रपरिमाण' इति क्षेत्रपरिमाणविषयोऽवधिर्वक्तव्यः। एवं संस्थानविषय इति। अथवा 'अर्थाद्विभक्तिपरिणाम' इति द्वितीयैवेयम्, ततश्च व अवधेर्जघन्यमध्यमोत्कृष्टभेदभिन्न क्षेत्रप्रमाणं वक्तव्यम्।तथा संस्थानमवधेर्वक्तव्यम्। आनुगामुक ca इति द्वारम्'।अनुगमनशील आनुगामुकः, सविपक्षोऽवधिर्वक्तव्यः।एकारान्तः शब्दः प्रथमान्त व इतिकृत्वा, यथा कयरे आगच्छइ' (उत्तरा. अ. 12 गा. 6) इत्यादि।तथा अवस्थितोऽवधिर्वक्तव्यः, द्रव्यादिषु कियन्तं कालम् अप्रतिपतितः सन्नुपयोगतो लब्धितश्चावस्थितो भवति। तथा चलोऽवधिर्वक्तव्यः, चलोऽनवस्थितः, सच वर्धमानः क्षीयमाणो वा भवति।तथा 'तीव्रमन्दाविति / द्वारम्'। तीव्रो मन्दो मध्यमश्चावधिर्वक्तव्यः, तत्र तीव्रो विशुद्धः, मन्दश्चाविशुद्धः, तीव्रमन्दस्तूभयप्रकृतिरिति। 'प्रतिपातोत्पादाविति द्वारम् / एककाले द्रव्याद्यपेक्षया , ca प्रतिपातोत्पादाववधेर्वक्तव्यौ // 27 // (वृत्ति-हिन्दी-) इनमें अवधि से लेकर गति पर्यन्त चौदह द्वार हैं। ऋद्धि (से सम्पन्न a के कथन) को जोड़ने से पन्द्रह (द्वार) हो जाते हैं। अन्य आचार्य 'अवधि' इस को छोड़ कर, . * आनुगामुक के साथ अनानुगामुक को अर्थ रूप में जोड़ कर, चौदह द्वारों का व्याख्यान - & करते हैं। (अवधि को वे क्यों छोड़ते हैं, क्योंकि) अवधि (स्वयं अपनी) प्रकृति नहीं है। तो क्या है? अवधि की ही प्रकृतियों का यहां विचार चल रहा है, और चूंकि (अवधि की) प्रकृतियों के : ही चौदह रूपों में निक्षेप का कथन यहां किया गया है। (अवधि को छोड़ें, या मिला।) दोनों , पक्षों में कोई विरोध नहीं है (दोनों ही अपनी-अपनी दृष्टि के आधार पर मान्य हैं)। इनमें 'अवधि' (द्वार) से तात्पर्य है कि अवधि के नाम आदि-भेदों के साथ इसका : स्वरूप बताना चाहिए। यहां 'अवधि' शब्द की दो बार आवृत्ति करनी चाहिए (तो अर्थ होगा-१ अवधि के अवधि आदि भेद)। इस प्रकार अवधि शब्द की व्याख्या हुई। और क्षेत्रपरिमाण - (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r) 177
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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