________________ - RECRcaca cace श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 909200000 / (हरिभद्रीय वृत्तिः) उक्तं मतिज्ञानम्, इदानीं अवसरप्राप्तं श्रुतज्ञानं प्रतिपिपादयिषुराह (नियुक्तिः) सुयणाणे पयडीओ, वित्थरओ आवि वोच्छामि // 16 // [संस्कृतच्छायाः- श्रुतज्ञाने प्रकृतीः विस्तरतः चापि वक्ष्ये // ] (व्याख्या-) श्रुतज्ञानं पूर्वं व्युत्पादितम् ।तस्मिन्, प्रकृतयो भेदा अंशा इति पर्यायाः। ce ताः, 'विस्तरतः' प्रपञ्चेन, चशब्दात् संक्षेपतश्च, अपिशब्दः संभावने, अवधिप्रकृतीश्च 'वक्ष्ये' 4 अभिधास्ये॥१६॥ (वृत्ति-हिन्दी-) मतिज्ञान का निरूपण सम्पन्न हुआ। अब क्रम-प्राप्तं श्रुतज्ञान का " प्रतिपादन कर रहे हैं [16] (नियुक्ति-अर्थ-) (अब) श्रुत ज्ञान की प्रकृतियों (भेदों) को विस्तार से कहूंगा। (वृत्ति-हिन्दी-) (व्याख्या-) श्रुतज्ञान का पूर्व में निरूपण किया जा चुका है, उसकी " प्रकृतियों अर्थात् भेदों या पर्यायों को विस्तार से कहूंगा। यहां 'च' ('और') से संक्षेप से भी , ca (कहीं कहीं) कथन करने का संकेत किया गया है। अपि (भी) यह पद 'संभावना' अर्थ को & व्यक्त कर रहा है, अर्थात् संभवतः अवधिज्ञान की प्रकृतियों का कथन करूंगा -यह अर्थ भी * यहां व्यक्त किया जा रहा है 16 // (हरिभद्रीय वृत्तिः) ___ इदानीं ता एव श्रुतप्रकृतीः प्रदर्शयन्नाह (नियुक्तिः) पत्तेयमक्खराइं, अक्खरसंजोग जत्तिआ लोए। __एवइया पयडीओ, सुयनाणे हुंति णायव्वा // 17 // 388888888888888883333333333333333333333333 [संस्कृतच्छायाः-प्रत्येकमक्षराणि अक्षरसंयोगा यावन्तो लोके।एतावत्यः प्रकृतयः श्रुतज्ञाने भवन्ति ज्ञातव्याः // ] (वृत्ति-हिन्दी-) अब श्रुतज्ञान की उन्हीं प्रकृतियों का निरूपण कर रहे हैं142 (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r) -