________________ Rececementce න න න න න න න න න න N 22322222333333333333333333333333333333333333 नियुक्ति-गाथा-13-15 मिथ्यात्व में जाएगा या केवल ज्ञान प्राप्त करेगा। किन्तु उत्कृष्ट काल सातिरेक (कुछ अधिक) छासठ सागरोपम प्रमाण होता है। उदाहरणार्थ- कोई मतिज्ञानसम्पन्न मुनि कुछ कम ‘पूर्व कोटि' काल तक . * प्रव्रज्या में रहकर, विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित -इन विमानों में से किसी भी एक वैमानिक देवों में उत्कृष्ट आयु-काल -सैंतीस सागरोपम को भोग कर पुनः मत्यादिज्ञान से अप्रच्युत होता हुआ मनुष्य में जन्म लेता है और पूर्वकोटि वर्ष तक जीवित होकर पुनः उक्त वैमानिक देवों में उत्कृष्ट तैंतीस सागरोपम प्रमाण आयु भोग कर पुनः मनुष्य बनता है, और पूर्व कोटि की आयु भोगकर सिद्ध-मुक्त , . होता है। इस प्रकार छासठ सागरोपम प्रमाण आयु का उत्कृष्ट काल पूर्ण होने का दृष्टान्त समझ लेना , & चाहिए। इसी तरह अन्य भी संगतिपरक घटित किये जा सकते हैं। जैसे, अच्युत देवलोक में 22 6 सागरोपम की उत्कृष्ट आयु तीन वार (मध्य में मनुष्य-जन्म प्राप्त करते हुए) भोग कर अन्त में a मनुष्यायु प्राप्त कर सिद्ध-मुक्त होने वाले के भी छासठ सागरोपम आयु का उत्कृष्ट काल संगत हो जाता है। आदि में, मध्य में और अंत में प्राप्त मनुष्य-आयु को जा काल भोगा जाता है, उतना काल अधिक जोड़ने से, साधिक छासठ सागरोपम प्रमाण उत्कृष्ट आयु-काल संगत होता है। नाना जीवों की दृष्टि से तो सभी कालों में मति ज्ञान की स्थिति रहती है। (हरिभद्रीय वृत्तिः) इदानीम् ‘अन्तरद्वारम्'। तत्रैकजीवमङ्गीकृत्य आभिनिबोधिकस्यान्तरं जघन्येनान्तर्मुहूर्त्तम् / कथम्?, इह कस्यचित् सम्यक्त्वं प्रतिपन्नस्य पुनस्तत्परित्यागे सति पुनस्तदावरणकर्मक्षयोपशमाद् अन्तर्मुहूर्त्तमात्रेणैव प्रतिपद्यमानस्येति। उत्कृष्टतस्तु 4 आशातनाप्रचुरस्य परित्यागे सति अपार्धपुद्गलपरावर्त्त इति।उक्तं च तित्थगरपवयणसुर्य, आयरियं गणहरं महिहीयं ।आसादितो बहुसो, अणंतसंसारिओ होइ। तीर्थकरं प्रवचनं श्रुतम् आचार्य गणधरं महर्द्धिकम् ।आशातयन् बहुशः अनन्तसंसारिको भवति।] तथा नानाजीवानपेक्ष्य अन्तराऽभाव इति। (वृत्ति-हिन्दी-) (5) अब ‘अन्तर' (प्राप्ति-विरह का काल, च्युति एवं पुनः प्राप्ति के .. मध्य का काल) द्वार का निरूपण किया जा रहा है। यहां एक जीव को लेकर निरूपण करें तो आभिनिबोधिक ज्ञान का अन्तर-काल जघन्य अन्तर्मुहूर्त होता है। (प्रश्न-) ऐसा क्यों? a (उत्तर-) सम्यक्त्व को प्राप्त हुए व्यक्ति का सम्यक्त्व जब च्युत हो जाए तो वह सम्बन्धित - आवरण कर्म के क्षयोपमशम के कारण अन्तर्मुहूर्त में ही पुनः सम्यक्त्व को प्राप्त कर सकता 8086880038000000000000 135