________________ 223333333333333333232323 -acca caca cace caca नियुक्ति-गाथा-13-15 000000mmकी निष्ठा से जुड़ी हुई है, अर्थात् क्रिया-काल ही उनका निष्ठाकाल है, दोनों अभिन्न हैं। उपर्युक्त विचारों के परिप्रेक्ष्य में, निश्चय नय के अनुसार, धर्मश्रमण आदि सम्यक्त्व-साधिका " a क्रियाओं के चरम समय में, सम्यक्त्व व ज्ञान 'प्रतिपद्यमान' होता हुआ 'प्रतिपन्न' भी है (द्र. . विशेषावश्यक भाष्य, गाथा-414-2,6 तथा उन पर शिष्यहिता वृत्ति)। (हरिभद्रीय वृत्तिः) तथा 'ज्ञानद्वारम्' ।तत्र ज्ञानं पञ्चप्रकारम्, मतिश्रुतावधिमनःपर्यायकेवलभेदभिन्नम् >> इति। अत्रापि व्यवहार निश्चयनयाभ्यां विचार इति। तत्र व्यवहार नयमतं . ल मतिश्रुतावधिमनःपर्यायज्ञानिनः पूर्वप्रतिपन्ना न तु प्रतिपद्यमानका इति, मत्यादिलाभस्य , सम्यग्दर्शनसहचरितत्वात् / केवली तु न पूर्वप्रतिपन्नो नापि प्रतिपद्यमानकः, तस्य : क्षायोपशमिकज्ञानातीतत्वात्।तथा मत्यज्ञानश्रुताज्ञानविभङ्गज्ञानवन्तस्तु विवक्षितकाले / प्रतिपद्यमाना भवन्ति, न तु पूर्वप्रतिपन्ना इति। निश्चयनयमतं तु मतिश्रुतावधिज्ञानिनः / << पूर्वप्रतिपन्ना नियमतः सन्ति, प्रतिपद्यमाना अपि सम्यग्दर्शनसहचरितत्वात् मत्यादिलाभस्य " a संभवन्तीति, क्रियाकालनिष्ठाकालयोरभेदात् / मनःपर्यायज्ञानिनस्तु पूर्वप्रतिपन्ना एव, न . प्रतिपद्यमानकाः, तस्य च भावयतेरेवोत्पत्तेः।केवलिनां तूभयाभाव इति।मत्याद्यज्ञानवन्तस्तु न पूर्वप्रतिपन्ना नापि प्रतिपद्यमानकाः, प्रतिपत्तिक्रियाकाले मत्याद्यज्ञानाभावात्, क्रियाकालनिष्ठाकालयोश्चाभेदात्, अज्ञानभावे च प्रतिपत्तिक्रियाऽभावात् (9) / a (वृत्ति-हिन्दी-) (9) अब 'ज्ञान' द्वार का निरूपण किया जा रहा है। ज्ञान के पांच . भेद इस प्रकार हैं- मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय और केवल ज्ञान / इनमें भी व्यवहार व : व निश्चय -इन दोनों दृष्टियों से विचार किया जा रहा है। इनमें व्यवहार नय का मत है कि मति, श्रुत, अवधि व मनःपर्यय ज्ञान वाले जीव पूर्वप्रतिपन्न हैं, प्रतिपद्यमान नहीं हैं। सम्यग्दर्शन 20 के साथ ही मति आदि का लाभ होता है। किन्तु 'केवली' न तो पूर्वप्रतिपन्न है और न ही " व प्रतिपद्यमान, क्योंकि उसके क्षायोपशमिक ज्ञान व्यतीत हो गया है (अर्थात् नष्ट, विलीन, 4 अतीत की बात हो गया है, क्षायिक केवल ज्ञान होने पर मति आदि चारों क्षायोपशमिक ज्ञान " फिर नहीं होते)। मति-अज्ञान, श्रुत-अज्ञान व विभंग ज्ञान वाले विवक्षित समय में प्रतिपद्यमान : होते हैं, किन्तु पूर्वप्रतिपन्न नहीं होते। निश्चय नय का मत तो यह है कि मति, श्रुत व अवधि ज्ञान वाले नियम से 'पूर्वप्रतिपन्न' होते हैं, और सम्यग्दर्शन के साथ होने के कारण मति 888888888888888888888888888888888888888888888 332222222222223323 8 88@ @ @ @ @ @ @ @ @ @ @