________________ -333333333333333333333333333333333333333333333 - RR OR CROR OR GR श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 22000202000 होना सम्भव ही नहीं है। (प्रश्न-) क्यों? (उत्तर-) प्रथम समय के बाद, शेष दिशाओं में | ce पराघात-द्रव्यों के अस्तित्व के कारण, द्वितीय समय में ही मथानी के आकार की सिद्धि हो , & जाएगी, और तृतीय समय में (दिशाओं के) अन्तराल भाग (भाषा द्रव्यों से) पूरित हो जाएंगें , (अतः समुद्घात की तरह भाषा द्रव्य के प्रसार मानने वाले मत में दोष यह है कि चार समयों / की बजाय तीन समयों में ही भाषा-द्रव्यों से लोक पूरित हो जाता है, जो आगम-विरुद्ध है)। a (हरिभद्रीय वृत्तिः) आह-जैनसमुद्घातवच्चतुभिरेवापूरणं भविष्यतीति को दोष इति, अत्रोच्यते, न, . सिद्धान्तापरिज्ञानात् / इह जैनसमुद्घाते स्वरूपेणापूरणात्, न तत्र पराघातद्रव्यसंभवोऽस्ति, . सकर्मकजीवव्यापारत्वात्तस्य।ततश्च कपाटनिवृत्तिरेव तत्र द्वितीयसमय इति।शब्दद्रव्याणां त्वनुश्रेणिगमनात्पराघातद्रव्यान्तरवासकस्वभावत्वाच्च द्वितीयसमय एव मन्थानापत्तिरिति। व अचित्तमहास्कन्धोऽपि वैससिकत्वात् पराघाताभावाच चतुर्भिरेव पूरयति, न चैवं शब्द इति, . << सर्वत्रानुश्रेणिगमनात्। इत्यलमतिविस्तरेण, गमनिकामात्रमेवैतत् प्रस्तुतमिति। " ca यदुक्तं 'लोकस्य च कतिभागे कतिभागो भवति भाषायाः' इति।तत्रेदमुच्यते-'लोकस्य c& च' |क्षेत्रगणितमपेक्ष्य 'चरमान्ते' असंख्येयभागे, 'चरमान्तः' असंख्येयभागो भवति 'भाषायाः' - समग्रलोकव्यापिन्याः, इति गाथार्थः // 11 // (वृत्ति-हिन्दी-) पूर्वपक्षी (जो समुद्घात की तरह भाषा द्रव्य के प्रसार का समर्थक & है, उसके) द्वारा कथन- (चार समयों में समस्त लोक को पूरित करने वाले) जैन समुद्घात - & की तरह चार समयों में ही लोक पूरित होगा, फिर दोष क्या है? (उत्तर-) ऐसा कहना ठीक , & नहीं। वस्तुतः सिद्धान्त से आप परिचित नहीं है। जैन समुद्घात में (आत्म-प्रदेश) स्वरूपतः C लोक को स्पृष्ट करते हैं। वहां चूंकि वह (समुद्घात) सक्रिय जीव-व्यापार रूप होता है, अतः C पराघात-द्रव्यों का सद्भाव सम्भव नहीं। इसलिए द्वितीय समय में कपाट-आकृति का निर्माण होता है, किन्तु शब्दद्रव्यों की गति 'अनुश्रेणी' ही होती है और वे पराघात-स्वभावी भी है होते हैं, इसलिए द्वितीय समय में ही मथानी के आकार का निर्माण हो जाएगा (जब कि " * समुद्घात में तो तृतीय समय में जाकर मथानी की आकृति बनती है)। अचित्त महास्कन्ध भी " & स्वाभाविक (स्वभावप्रेरित) होने से तथा पराघात की स्थिति का अभाव होने से, चार समयों में ही लोक को पूरित करता है, किन्तु शब्द वैसा नहीं होता, क्योंकि वह सर्वत्र अनुश्रेणी 98 @ @ @ @ce@ @ @ @ @ @ @cR998 -