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________________ 223222333333333333333333333333333333333333333 cace ca cace cace can नियुक्ति गाथा- 11 9 09020 20 20 20 2009 की कोई दिशा) में स्थित होकर बोलता है तो उस व्यक्ति द्वारा उच्चारित भाषा-द्रव्यों को दो समय त्रस & नाड़ी में प्रविष्ट होने में लग जाते हैं। क्योंकि प्रथम समय में विदिक् से दिक् में, द्वितीय समय में त्रस , नाड़ी के मध्य आना सम्भव होता है। तृतीय समय में चारों दिशाओं में प्रसरण, चतुर्थ समय में छः मथानी का रूप ग्रहण सम्भव होता है और समस्त लोक को पूरित होने में पांच समय लग जाते हैं। (हरिभद्रीय वृत्तिः) अन्ये तु जैनसमुद्घातगत्या लोकापूरणमिच्छन्ति / तेषां चाद्यसमये भाषायाः खलु , & ऊर्ध्वाधोगमनात् शेषदिक्षु न मिश्रशब्दश्रवणसंभवः ।उक्तं चाविशेषेण- "भासासमसेटीओ, , सदं जं सुणइ मीसयं सुणइ" (६)त्ति। अथ मतम्- 'व्याख्यानतोऽर्थप्रतिपत्तिः' इति न्यायाद्दण्ड एव मिश्रश्रवणं भविष्यति, , न शेषदिक्ष्विति, ततश्चादोष इति।अत्रोच्यते, एवमपि त्रिभिः समयैर्लोकापूरणमापद्यते, न , चतुःसमयसंभवोऽस्ति / कथम्? प्रथमसमयानन्तरमेव शेषदिक्षु पराघातद्रव्यसद्भावात् द्वितीयसमय एव मन्थानसिद्धेः, तृतीये च तदन्तरालापूरणात् इति। . (वृत्ति-हिन्दी-) कुछ (व्याख्याता) जैन (दर्शन में मान्य) समुद्घात के जैसी ही 4 (भाषा द्रव्य की) गति (विस्तार) मान कर भाषा-द्रव्यों से लोक का पूरित होना मानते हैं। / c. उनके मत में, प्रथम समय में भाषा ऊर्ध्व व नीचे (समुद्घात की तरह, चतुरंगुल-प्रमाण दण्ड 0 a रूप में) गमन करती है, इसलिए शेष दिशाओं में मिश्र शब्द का श्रवण सम्भव नहीं हो पाता ल है (और ऐसा होना दोषपूर्ण व आगमविरुद्ध है), क्योंकि सामान्यतः यह (पहले, गाथा सं. छः में) कहा जा चुका है- 'भाषा की समश्रेणी में स्थित श्रोता जिस शब्द को सुनता है, वह , & मिश्र शब्द सुनता है'। तब (उक्त दोष के निवारण हेतु) वे (व्याख्याता) इस प्रकार कहते हैं- 'व्याख्यान से (विशेष) अर्थ का प्रतिपादन होता है' -इस नियम से (ऊर्ध्व व नीचे फैले चार अंगुल वाले), दण्ड (आकृति की स्थिति) में ही 'मिश्र' श्रवण होता है (ऐसा हम मानते हैं), शेष दिशाओं में से ल नहीं, इसलिए कोई दोष नहीं रहा (अर्थात् मिश्र शब्द के श्रवण न होने का जो दोष लगाया , गया था, वह उक्त प्रकार से निरस्त हो जाता है)। (उत्तर-) (उक्त व्याख्यानानुसार जो 2. & प्रतिपादन किया गया है, उसके निराकरण हेतु) हमारा यह कहना है- उक्त प्रकार से तो " / तीन समयों में ही (भाषा-द्रव्य द्वारा) लोक का आपूरण हो जाएगा, वहां चार समयों का , 888888888888888888888888333333333333388888888 - @BRBRBROSRO90@RO90000000 970
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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