________________ C -RecenamRece 393029999990 -233333333333333333333333333333333333333333333 नियुक्ति गाथा-11 | किसी विशिष्ट भाषा से ही (लोक स्पृष्ट होता है, न कि सभी भाषाओं से)। (प्रश्न-) ऐसा / ca क्यों? (उत्तर-) कोई वक्ता मन्द प्रयत्न (के साथ बोलने) वाला होता है, वह अभिन्न (पृथक् पृथक् स्पष्ट न सुनाई देने वाले, अपूर्ण) शब्द-द्रव्यों का ही विसर्जन करता है, वे विसर्जित , शब्द-द्रव्य असंख्येय (पुद्गल-स्कन्ध) होने तथा (अपेक्षाकृत) अतिस्थूल होने के कारण, भिन्न-भिन्न (बिखर) जाते हैं, भिन्न-भिन्न होकर वे संख्यात योजन तक जाकर शब्द-परिणति , का त्याग कर देते हैं (अर्थात् शब्दात्मक परिणति से च्युत ही हो जाते हैं, इसलिए ऐसी भाषा " से लोक स्पृष्ट नहीं हो पाता)। किन्तु कोई महाप्रयत्न वाला (वक्ता) हो तो वह शब्द-द्रव्यों के ग्रहण व निसर्जन में ही ऐसा (अधिक) प्रयत्न करता है कि (वे शब्द-द्रव्य) भिन्न-भिन्न (पृथक्-पृथक् स्पष्ट) होकर " . ही विसर्जित होते हैं, जो (अपेक्षाकृत अधिक) सूक्ष्मता और बहुलता के कारण, अनन्तगुण- 20 बुद्धि के साथ (आगे-आगे) बढ़ते हुए, छहों दिशाओं में (फैलते हुए) लोक के अंतिम छोर तक , पहुंच जाते हैं, (क्योंकि) उनके अतिरिक्त भी जो उनके द्वारा वासित भाषा-द्रव्य होते हैं, ऐसे , 64 पौगलिक द्रव्य विशिष्ट वासना के कारण समस्त लोक को पूरित कर देते हैं। चूंकि नाप-तौल , आदि में मध्यम (औसत) परिमाण का निरूपण किया जाता है, इसलिए यहां 'चार समय' . का जो निर्देश किया गया है, उससे तीन या पांच समयों का भी ग्रहण करणीय है- ऐसा & समझना चाहिए। (हरिभद्रीय वृत्तिः) - तत्र कथं पुनस्त्रिभिः समयैः लोको भाषया निरन्तरमेव भवति स्पृष्ट इति?, उच्यते। लोकमध्यस्थवक्तृपुरुषनिसृष्टानि, यतस्तानि प्रथमसमय एव षट्सु दिक्षु लोकान्तमनुधावन्ति, जीवसूक्ष्मपुद्गलयोः 'अनुश्रेणि गतिः' (तत्त्वार्थ. अ. 2 सूत्र 21) इति वचनात्।द्वितीयसमये तु " त एव हि षट् दण्डाश्चतुर्दिशमेकैकशो विवर्धमानाः षट् मन्यानो भवन्ति, तृतीयसमये तु पृथक् . * पृथक् तदन्तरालपूरणात् पूर्णो भवति लोक इति।एवं त्रिभिः समयैर्भाषया लोकः स्पृष्टो भवति। " यदा तु लोकान्तस्थितो वा भाषको वक्ति, चतसृणां दिशामन्यतमस्यां दिशि नाड्या . a बहिरवस्थितस्तदा चतुर्भिः समयैरापूर्यत इति।कथम्?, एकसमयेन अन्तर्नाडीमनुप्रविशति, . त्रयोऽन्ये पूर्ववद्रष्टव्याः। यदा तु विदिग्व्यवस्थितो वक्ति, तदा पुद्गलानामनुश्रेणिगमनात् समयद्वयेनान्तर्नाडीमनुप्रविशति, शेषसमयत्रयं पूर्ववद्रष्टव्यमित्येवं पञ्चभिः समयैरापूर्यत इति। , / 8088890cRneK@@@908900CRO900 95 म