________________ RRRRRRece හ හ හ හ හ හ හ හ හ 23333333333333333333333333333333 नियुक्ति गाथा-8 (शंकाकार ने) कहा- 'उसके बाद वक्ता भाषण करता है' -इतने कथन मात्र से ही ca बात पूरी हो जाती, ('भाषा का भाषण करता है' -यह कहकर 'भाषा का' यह कथन है अतिरिक्त (अनपेक्षित) हो जाता है (अतः भाषा को भाषित करता है -यह कथन क्यों किया . & गया?) (उत्तर-) आपका आरोप सही नहीं है, क्योंकि (हमारे कथन के) अभिप्राय को आप समझ नहीं पाए हैं। जो भाषित की जाती है, उसे ही 'भाषा' कहना चाहिए, भाषण से पूर्व या भाषण के बाद भाषा (की सत्ता) नहीं होती -इस अर्थ (अभिप्राय) को व्यक्त करने लिए यहां " 'भाषा' शब्द का (अतिरिक्त) ग्रहण किया गया है। अतः (जैसा शंकाकार ने कहा है, वैसा) a कोई दोष नहीं रह जाता। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ IB || विशेषार्थ ___“जीव के प्रदेश' इतना ही कहना पर्याप्त था, फिर भी नियुक्ति में 'जीव के जीव-प्रदेश' यह " ca कथन किया है जिसमें विशेष बात अन्तर्निहित है। यहां जीव शब्द दो बार पढ़ा गया है, जो यह सूचित ca करता है कि जो जीव के प्रदेश हैं, वे जीव के ही हैं (या जीव रूप ही हैं), अर्थात् जीव और उसके प्रदेश ca अभिन्न हैं। जिस प्रकार 'भिक्षु का पात्र' ऐसा कहने पर भिक्षु व पात्र -इन दोनों की भिन्नता समझ में 2 & आती है, उसी तरह ‘जीव के प्रदेश' ऐसा कहने पर जीव और उसके प्रदेश -इन दोनों में भी कोई परस्पर-भिन्नता का बोध कर सकता है- इसलिए दो बार जीव शब्द का कथन किया गया है। वस्तुतः जीव एक अखण्ड द्रव्य है, वह द्रव्यतः एक है, वह निर्विभाग है, उसका अंश-अंश करके पृथक्-पृथक् विभाग सम्भव नहीं है। किन्तु काल्पनिक या व्यावहारिक दृष्टि से उसके असंख्यात प्रदेशों (अंशों) का " ल होना माना जाता है। शुद्धनय से आत्मा अप्रदेश ही है। अतः आत्मा की सावयवता कथंचित् ही है (द्र. ca राजवार्तिक-5/6 तथा 5/8) / आत्मा की सप्रदेशता (सावयवता) को लेकर दार्शनिकों में मतभेद है। व्याय-वैशेषिकों के 6 मत में आत्मा नित्य, निरवयव है। उनके मत में सावयव पदार्थ कार्य (उत्पन्न होने वाले) तथा अनित्य & होते हैं, इसलिए यदि आत्मा को सावयव माना जाएगा तो उसकी नित्यता पर प्रश्नचिन्ह लगेगा। जैनदर्शन आत्मा को नित्य भी मानता है और असंख्यात प्रदेशी भी। आत्मा परिणामीनित्य है, और नित्यता व परिणामयुक्तता -दोनों उसमें सम्भव हैं। जहां तक शरीर के हाथ, पांव, ग्रीवा आदि अंगों की बात है, जैन व न्यायवैशेषिक -सभी उन्हें सावयव मानते हैं। - (r)(r)ca(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)e 83