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________________ හ හ හ හ හ හ හ හ හ හන 888888888 333333333333333333333333333333333333333333333 नियुक्ति गाथा-6 गृहीत, उपलब्ध) शब्द को (श्रोता) मिश्र रूप में (ही) सुनता है। तात्पर्य यह है कि जो शब्द ca समश्रेणी में प्राप्त होकर सुनाई देता है, वह उत्सृष्ट शब्द-द्रव्य से भावित (वासित-प्रकम्पित) >> & आकाशस्थ शब्द द्रव्यों से मिश्रित होकर सुनाई देता है। a (हरिभद्रीय वृत्तिः) विश्रेणिं पुनः इत इति वर्त्तते / ततश्चायमर्थो भवति-विश्रेणिव्यवस्थितः पुनः श्रोता & 'शब्दम्' इति।पुनः शब्दग्रहणं पराघातवासितद्रव्याणामपि तथाविधशब्दपरिणामख्यापनार्थम् / 1 शृणोति नियमात्' नियमेन पराघाते सति यानि शब्दद्रव्याणि उत्सृष्टाभिघातवासितानि तान्येव, न पुनरुत्सृष्टानीति भावार्थः।कुतः?-तेषामनुश्रेणिगमनात्प्रतीघाताभावाच्च ।अथवा विश्रेणिस्थित 6 एव विश्रेणिरभिधीयते, पदेऽपि पदावयवप्रयोगदर्शनात् 'भीमसेनः सेनः, सत्यभामा भामा' इतिगाथार्थः // 6 // (वृत्ति-हिन्दी-) इत=स्थित, प्राप्त / यह पद 'विश्रेणी' के साथ भी जुड़ता है (समश्रेणी , के साथ 'स्थित' शब्द जो जुड़ा था, वह 'विश्रेणी' के साथ भी जुड़ेगा, और तब) इस प्रकार , ca अर्थ होगा- किन्तु विश्रेणी (विषय श्रेणी) में स्थित जिस शब्द को सुनता है। यहां 'शब्द' का ? & पुनः ग्रहण (नियुक्ति में) किया गया है (अर्थात् गाथा के प्रथम चरण में 'शब्द' आ गया था, " उसका अध्याहार किया जा सकता था, फिर भी नियुक्ति में गाथा की दूसरी पंक्ति में पुनः . 'शब्द' इसका प्रयोग किया है)। इसका प्रयोजन यह है कि वे यह बताना चाहते हैं कि पराघात से वासित (प्रकाम्पित) द्रव्य भी वैसी ही अर्थात् (पूर्वोक्त उत्सृष्ट शब्दात्मक) परिणति वाले हैं (अर्थात् वे अशब्द नहीं हैं)। भावार्थ यह है कि पराघात होने पर, अर्थात् उत्सृष्ट शब्दव द्रव्य के अभिघात से वासित जो शब्द होते हैं, नियमतः उन्हें ही सुनता है, उत्सृष्ट (मूल शब्दों) 4 को नहीं सुनता / (प्रश्न-) ऐसा क्यों? (उत्तर-) इसलिए कि वे उत्सृष्ट शब्द द्रव्य अनुश्रेणी में 20 * ही गति करते हैं और (चूंकि वे सूक्ष्म होते हैं अतः) उनका प्रतिघात (अवरोध आदि) नहीं - होता / अथवा- 'विश्रेणी' का अर्थ है- विश्रेणी में स्थित (श्रोता), क्योंकि पद के अन्वय (अंश) को भी 'पद' के रूप में प्रयुक्त किया जाता है, जैसे भीमसेन की जगह 'सेन', सत्यभामा की C जगह ‘भामा' / [इस व्याख्यान के अनुसार 'विश्रेणी' पद के साथ 'इत' (स्थित) पद की अनुवृत्ति CA करने की आवश्यकता नहीं है, बिना 'इत' लगाए ही 'विश्रेणी' का अर्थ 'विश्रेणी-स्थित' हो जाता - है।] | यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ |6| &&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&& 808888@@@@@@@@ 73
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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