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________________ -RRRRRRRcace 488 नियुक्ति गाथा-6 2000900909 स्थित रहता है, और (2) बाह्यकरण, जो शरीर से बाहर रहता है। द्रव्य मन भी एक अन्तःकरण है। , शरीर से बिना बाहर निकले, शरीर में (ही) स्थित रहने वाले उस (अन्तःकरण रूप द्रव्यमन) के cs माध्यम से जीवात्मा (दूरस्थित) मेरु आदि विषयों को (भी) उसी प्रकार जान लेता है जिस प्रकार स्पर्शन इन्द्रिय के माध्यम से (बहिःस्थित) कमल-नाल आदि के स्पर्श का अनुभव वह करता है। यहां " & पूर्वपक्षी पुनः शंका करता है- यद्यपि द्रव्यमन शरीरस्थ ही है, किन्तु जैसे पद्मनाल का तन्तु अपने मूल , शरीर से बाहर निकल जाता है, उसी तरह द्रव्यमन शरीर से बाहर क्यों नहीं निकल सकता? भाष्यकार ने उत्तर दिया कि द्रव्यमन का अन्तःकरणत्व रूप लक्षण वाला होना ही वह 'हेतु' है, जिसके कारण वह द्रव्यमन स्पर्शन इन्द्रिय की तरह (शरीर से) बाहर नहीं निकलता। अगर वह बाहर निकलने वाला साधन हो तो उसका 'अन्तःकरण' यह नाम ही निरर्थक हो जाय। a (हरिभद्रीय वृत्तिः) किं च प्रकृतम्?, स्पृष्टं शृणोति शब्दमित्यादि।अत्र किं शब्दप्रयोगोत्सृष्टान्येव केवलानि , शब्दद्रव्याणि गृह्णाति? उत अन्यान्येव तद्भावितानि? आहोस्विन्मिश्राणि इति / चोदकाभिप्रायमाशय, न तावत्केवलानि, तेषां वासकत्वात्, तद्योग्यद्रव्याकुलत्वाच्च लोकस्य, , किन्तु मिश्राणि तद्वासितानि वा गृह्णाति इत्यमुमर्थमभिघित्सुराह- . (नियुक्तिः) भासासमसेढीओ, सदं जंसुणइ मीसयंसुणई। वीसेढी पुण सदं, सुणेइ नियमा पराघाए // 6 // .. [संस्कृतच्छायाः-भाषासमश्रेणीतः शब्दं यं शृणोति मिश्रकं शृणोति।विश्रेणिः पुनः शब्दं शृणोति . नियमात्पराघाते॥] (वृत्ति-हिन्दी-) प्रकृत विषय क्या है? वह है- "(श्रोत्र इन्द्रिय) स्पृष्ट शब्द द्रव्यों का : a ग्रहण करती है" इत्यादि। यहां श्रोत्र इन्द्रिय जिन शब्द द्रव्यों का ग्रहण करती है, वे शब्द-द्रव्य " क्या मात्र शब्द-प्रयोग के रूप में उत्सृष्ट (छोड़े गये) द्रव्य ही होते हैं, या उनसे भावित अन्य , द्रव्य भी. या फिर मिश्रित होते हैं? इस प्रकार के अभिप्राय वाली शंका को दृष्टि में रख कर, : * नियुक्तिकार यह कहना चाहते हैं कि श्रोता केवल उक्त (वक्ता द्वारा उत्सृष्ट मूल) शब्द द्रव्यों को , ही ग्रहण नहीं करता, अपितु मिश्र रूप में ग्रहण करता है। अर्थात् वे शब्द द्रव्य जिन अन्य , द्रव्यों को वासित करते हैं, उन (वासित) द्रव्यों से यह लोक व्याकुल (आपूर्ण) है, इसलिए, श्रोता मिश्र या उनसे वासित शब्द द्रव्यों को ग्रहण करता है। इसी अर्थ को कहने के लिए " नियुक्तिकार (आगे गाथा) कह रहे हैं- (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r) 71 22222223823222222232322322232333333333333333 88888888888 &&&&&&&&&&&&
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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