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________________ यदि कर्म ही सब कुछ होता तो प्राणी बंधन को तोड़कर कभी मुक्त नहीं होता। कर्म ही सब कुछ नहीं है। कर्म के अतिरिक्त भी अनेक तथ्य हैं, जो अपनी-अपनी सीमा में कार्यकारी होते हैं। अव्यवहार-राशि से व्यवहार-राशि में आना, अविकास से विकास की ओर बढ़ना, चैतन्य की अविकसित भूमिका से ऊर्ध्वारोहण कर विकसित चैतन्य की भूमिका को प्राप्त करना, बंधन तो तोड़कर मुक्ति की ओर अग्रसर होना, आवरण से अनावरण की ओर बढ़ता, परतंत्रता की बेड़ियों को तोड़कर स्वतंत्रता को प्राप्त करना, तभी संभव है जब काललब्धि का पूरा परिपाक हो जाता है। अन्यथा प्रश्न ज्यों का त्यों खड़ा रह जाता है कि जब सौ व्यक्ति मुक्त हो सकते हैं तो सब मुक्त क्यों नहीं हो सकते? सब मुक्त हो सकते हैं। मुक्त होने का सबको अधिकार है। किन्तु सब मुक्त नहीं हो सकते। जिनकी काललब्धि पक चुकी है, वे ही मुक्त हो पाते हैं। शेष काललब्धि के परिघाक की प्रतीक्षा करते रहते हैं। इसमें सब कुछ पुरुषार्थ से होता है, ऐसा भी नहीं। सब कुछ कर्म से होता है, ऐसा भी नहीं। कर्म का एकछत्र साम्राज्य नहीं है, इसीलिए कर्म के व्यूह को तोड़ा जा सकता है। मोह का भी एकछत्र साम्राज्य नहीं है, इसीलिए मोह के चक्रव्यूह को भी तोड़ा जा सकता है। ___हमारे जीवन को सबसे अधिक प्रभावित करता है-मोहकर्म। एक अज्ञान और एक मोह-ये प्रभावक तथ्य हैं जीवन के। ज्ञानावरण कर्म के कारण हम सही जान नहीं पाते। अन्तराय कर्म के कारण हम शक्ति का उपयोग नहीं कर पाते और दर्शनावरण कर्म के कारण सही नहीं देख पाते। मोह कर्म के कारण जानते हुए भी, देखते हुए भी, शक्ति और सामर्थ्य का उपयोग करते हुए भी सही-सही आचरण नहीं कर पाते। दृष्टि में कोई विकार उत्पन्न करता है तो वह मोहकर्म करता है। आचरण की विकृति मोहकर्म के कारण होती है। मोहकर्म केन्द्रीय कर्म है। आगम सूत्रों में इसे सेनापति की संज्ञा दी गयी है। जैसे सेनापति के मर जाने पर सेना भाग जाती है, वैसे ही मोहकर्म के नष्ट हो जाने 76 कर्मवाद
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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