SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जाता है। बाहर की ओर दौड़ने लग जाता है। जब कामशक्ति की प्रत्यावृत्ति होती है, डिप्रेशन होता है तो व्यक्ति भीतर में सिमट जाता है। उसकी बाहरी वृत्तियां समाप्त हो जाती हैं। ठीक हम इसी कर्मशास्त्रीय भाषा का प्रयोग करें कि अविरति जब तीव्र होती है तब पुरुष बाहर की ओर भागता है। उसकी आकांक्षा इतनी बढ़ जाती है कि वह सारे संसार को अपनी मुट्ठी में बन्द करने का प्रयत्न करता है और सब कुछ बाहर-ही-बाहर देखता है। उसे सब कुछ बाहर-ही-बाहर दीखता है। जब यह अविरति कम होती है, व्यक्ति अपने भीतर सिमटना शुरू हो जाना है। जब भीतर सिमटना शुरू होता है तो आकांक्षाएं कम होती हैं, चंचलता अपने आप कम हो जाती है। एक संस्कृत कवि ने कहा है आशा नाम मनुष्याणां, काचिदाश्चर्यशृंखला। यया बद्धाः प्रधावन्ति, मुक्तास्तिष्ठन्ति पशुवत् // आशा नाम की एक सांकल है। यह अद्भुत सांकल है। लोहे की सांकल से आदमी को बांध दो, वह चल नहीं पायेगा। सांकल को खोल दो, वह चलने लग जायेगा। किन्तु आशारूपी सांकल से आदमी को बांध दो, वह दौड़ने लग जायेगा। सांकल को खोल दो, वह पंगु की तरह बैठ जाएगा। कितनी उल्टी बात है! एक सांकल वह है जिसमें * बंधा आदमी चल नहीं सकता, सांकल से मुक्त होते ही वह दौड़ने लग जाता है। एक सांकल वह है जिससे बंधा आदमी दौड़ने लगता है और मुक्त होने पर एक पैर भी नहीं चल पाता। कितनी अद्भुत बात है! __चंचलता पैदा करने वाला, सक्रियता पैदा करने वाला, भटकाने वाला जो तत्त्व है, वह है अविरित। यह एक ऐसी प्यास है जिसे हम अभी तक बुझा नहीं पाये। इतना भोग कर भी बुझा नहीं पाते। चंचलता का यही बड़ा स्रोत है। एक प्रश्न आता है कि जब हम इतना जान गए कि चंचलता का स्रोत है आकांक्षा, इच्छा, अतृप्ति, फिर भी उसे बुझा नहीं पाते। यह क्यों? आदमी जान ले, फिर क्यों नहीं बुझा पाये? इसका भी एक कारण है। यह भ्रम है कि आदमी ने जान लिया। वह अभी कर्म का बन्ध 61
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy