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________________ हवा से, चाहे बिजली से और चाहे और किसी साधन से। वह अपने आप नहीं घूमता, किसी प्रेरणा से घूमता है। चंचलता अपने आप नहीं होती। चंचलता की तह में कुछ और होता है। ___पारिभाषिक शब्दावली में चंचलता को योग कहा जाता है। यह योग आस्रव है। योग आस्रव अपने आप प्रवृत्त नहीं होता, उसके पीछे कोई अपेक्षा होती है। वह अपेक्षा है-अविरति। अविरति अर्थात् छिपी हुई चाह। वह छिपी हुई ज्वाला है, आग है। आग भभक रही है। चाह है। सुख को पाने की चाह और दुःख को मिटाने की चाह। प्रिय को पाने की चाह और अप्रिय को मिटाने की चाह। अनुकूल को प्राप्त करने की चाह और प्रतिकूल को समाप्त करने की चाह। सुख-सुविधा को पाने की चाह और कष्ट को मिटाने की चाह। यह जो विभिन्न प्रकार की आन्तरिक चाह है, आकांक्षा है, इसे मनोविज्ञान की भाषा में 'अदस् मन' कहा गया है। कर्मशास्त्र की भाषा में यह अविरति आस्रव है। अविरति का अर्थ है-विरति का अभाव। अभी तक चाह मिटी नहीं है, प्यास बुझी नहीं है, अतृप्ति है। कंठ अभी तक सूखा-ही-सूखा है। कितना ही पानी पी लिया, पर अभी तक कंठ सूखे हैं। प्यास बुझी नहीं। सारे संसार का पानी पी लिया, पर प्यास बुझी नहीं। यह अमिट चाह। अमिट चाह का जो स्रोत. है, उसे अविरति आस्रव कहा गया है। इसकी मात्रा जितनी अधिक होगी, चंचलता अधिक बढ़ेगी। चंचलता यदि स्वाभाविक होती तो सब प्राणियों में समान होती। कुछ लोग बरामदे में बैठे हैं। सड़क पर बाजे बजते हैं। कुछ खड़े होकर सड़क पर देखने लग जाएंगे, कुछ शांत बैठे रहेंगे। यह अन्तर क्यों? जिनमें अविरति प्रबल है; चाह प्रबल है, उत्सुकता प्रबल है, वे देखने को दौड़ेंगे, भागेंगे, प्रयत्न करेंगे, सुनना चाहेंगे। जिनमें अविरति कम है, चाह कम है, उत्सुकता कम है, वे अपने आप में शांत बैठे रहेंगे। अन्तर्वृत्ति होकर बैठे रहेंगे। वे बहिर्वृत्ति नहीं रहेंगे। वे बाहर नहीं भागेंगे। यह आकर्षण का काम होना सहजभाव में अन्तर्वृत्ति होना है। मानसशास्त्र में दो प्रकार की वृत्तियों का उल्लेख है-अन्तर्वृत्ति और बहिर्वृत्ति। कामशक्ति जब आगे की ओर बढ़ती है, व्यक्ति बहिर्वृत्ति हो 60 कर्मवाद
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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