SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 298
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ थक गए। क्या बात है? दूसरे घर क्यों नहीं चले जाते?' उसने कहा, 'तुम बात तो ठीक कहते हो, पर कैसे जाऊं? अपनी इतनी पलियों को छोड़ कैसे जाऊ?' उन कुत्तों ने कहा, 'कौन-सी पलियां? कहां से टपक पड़ीं तुम्हारी पत्नियां?' उस कुत्ते ने कहा, 'धोबी की कई पत्नियां हैं। जब वे लड़ती हैं तब वे एक-दूसरे को कहती हैं, 'आई रांड शताबा की बैर। अब बताओ वे सब मेरी पत्नियां हैं कि नहीं। उन्हें छोड़ कैसे जाऊं?' ___मनुष्य भी अपने चारों ओर मोह का एक ऐसा वलय बना लेता है कि उसे तोड़ नहीं पाता। कुत्ते को 'शताबा की बैर' से कोई लेना-देना नहीं, फिर भी मन में एक मोह जाग गया कि वह अपनी पत्नियों को छोड़कर कहीं नहीं जा सकता, भले ही वह भूखा मर जाए। क्या आप यह नहीं मानते कि धन के पीछे दौड़ने वाले बहुत सारे लोगों में एक मूर्छा जाग जाती है कि वे सुख के लिए धन नहीं कमाते किन्तु धन के लिए धन कमाते हैं, धन के लिए धन का अर्जन करते हैं? वे धन से मात्र अपना बड़प्पन प्रदर्शित करना चाहते हैं। इसके सिवाय कोई सुख नहीं होता। यदि धन वाले सुखी हों और इस सिद्धांत को कोई प्रमाणित कर सके तो शायद हम कर्मवाद के प्रश्न पर पुनर्विचार करने को तैयार हो सकते हैं। किन्तु आज तक यह कोई प्रमाणित नहीं कर सका कि धनपति सुखी होता है। इतना तो मैं मान सकता हूं कि धनपति सुविधापूर्ण जीवन जी सकता है। धन से सुविधाएं प्राप्त हो सकती हैं। धन से जो वस्तु चाहे, वह मिल सकती है। वस्तु का मिलना सुख का मिलना नहीं है। यदि हम वस्तु का मिलना सुख का मिलना मान लेते हैं तो भ्रांति छा जाती है। वस्तु का मिलना कुछ और है सुख का मिलना कुछ और है। हम देखते हैं कि वस्तुओं का संग्रह करने वाले दुश्चिताओं में जीते हैं। हम सबसे पहले यह समझें कि वस्तु का होना एक बात है और सुख का होना दूसरी बात है। दोनों की भिन्न-भिन्न दिशाएं हैं। वस्तु के न होने पर भी आदमी सुखी हो सकता है और बहुत सारी वस्तुओं की सुगमता होने पर भी आदमी सुखी नहीं हो सकता। यह बात समझ 288 कर्मवाद
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy