________________ में आने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि पदार्थ को कर्म या धर्म के साथ जोड़ना आवश्यक नहीं है। धर्म के द्वारा जो प्राप्त होता है, वह है हमारी आन्तरिक अनुभूति। धर्म से हमारा आंतरिक व्यक्तित्व बनता है और अधर्म से वह बिगड़ता है। कर्म की व्यवस्था हमारे आंतरिक व्यक्तित्व के निर्माण में या बिगाड़ने में है, न कि पदार्थ को जुटाने में। जब ठंडी हवा चलती है तब सुख का अनुभव होता है। मैं पूछना चाहता हूं-ठंडी हवा किस व्यक्ति के पुण्य कर्म से चली, किसके भाग्य से चली? वर्षा होती है, वह किसके कर्म से होती है? एक आदमी कश्मीर में जन्म लेता है और गर्मी का मौसम सुखपूर्वक बिता देता है। एक आदमी राजस्थान में जन्म लेता है और गर्मी के दिनों में बहुत कष्ट का अनुभव करता है। तो क्या हम मान लें कि कश्मीर में जन्म लेने वाले सारे भाग्यशाली हैं और राजस्थान में जन्म लेने वाले सारे लोग भाग्यहीन हैं? कश्मीर में जन्म लेने वाले सुन्दर होंगे, गौर वर्ण के होंगे और रेगिस्तान में जन्म लेने वाले सारे लोग काले वर्ण के होंगे। तो क्या गोरे लोग . भाग्यशाली हैं और काले लोग भाग्यहीन हैं? क्या हम इस बात को स्वीकार कर लेंगे? प्रकृति से होने वाले सारे परिवर्तनों को, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के आधार पर घटित होने वाली घटनाओं को यदि हम कर्म के साथ जोड़ देते हैं, उन्हें कर्म का फल मान लेते हैं तो वहां बड़ी कठिनाई उत्पन्न हो जाती है। हम उन्हें निमित्त मान सकते हैं, हेतु मान सकते हैं, किन्तु कर्म का परिणाम नहीं मान सकते। एक व्यक्ति को धन मिल गया तो क्या हम यह मानें कि इसने बहुत अच्छा कर्म किया था? प्रत्यक्ष में तो हम यह देखते हैं कि बड़ा धनी वही होता है जो ज्यादा बुराइयां करता है। ऐसे बहुत कम लोग मिलेंगे जो सदाचार, नैतिकता और पवित्रता के साथ धन का. अर्जन करें और बड़े धनपति बन जाएं। यह संभव नहीं लगता। नदी में बाढ़ आएगी तो गंदा पानी आएगा। ऐसा हो नहीं सकता कि नदी की बाढ़ आए और सारा-का-सारा निर्मल पानी आए। अच्छे साधनों से आदमी की जीविका चले उतना धन कमा सकता है, बहुत बड़ा धनी नहीं बन सकता। नैतिकता के नियमों का पूर्ण पालन करने वाला कभी धनी नहीं बन सकता। धन कमाने के अनेक साधन विकेन्द्रित अर्थ-व्यवस्था और कर्म गद 286