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________________ उसके भीतर है। मक्खन तो शरीर के भीतर है। यदि यह बर्तन ही ठीक नहीं होगा तो घी सीधा आग में जाएगा, खराब हो जाएगा। कोरे मन को सुधारने की बात या भावों को अच्छा करने की बात प्राप्त नहीं होती। यदि हम उपादान को ठीक कर देते हैं तो परिस्थिति स्वयं ठीक हो जाती है। उपादान को ठीक करना हमारे वश की बात है। आज. चक्र उल्टा चलता है। आदमी परिस्थिति को सबसे पहले ठीक करना चाहता है, व्यक्ति को नहीं। व्यक्ति उपादान है। उसको ठीक किए बिना परिस्थिति ठीक नहीं हो सकती। पहले हम उपादान को ठीक करें, साथ-साथ परिस्थिति का भी परिवर्तन हो। ___ इन सारे सन्दर्भो में कर्मवाद और ध्यान के सिद्धान्त को समझने में हमें सुविधा होगी, ध्यान के परिकर, ध्यान के विघ्न, शरीर और मन की बाधाएं, विचार के विघ्न आदि को सही-सही समझने में सहयोग मिलेगा। हम संतुलित दृष्टि का विकास करें। हमें उपादान और निमित्त-इन दोनों के साथ चलना है। इन दोनों को समझना है। कर्मवाद और ध्यान को भी इन दोनों सन्दर्भो में समझते हैं तो हमारे विकास में सहयोग मिलता है। 240 कर्मवाद
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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